देश की सरकारी या निजी कंपनियों में काम करने वाले कर्मचारियों को अलग-अलग तरह की छुट्टियां दी जाती हैं। हालांकि, कई बार कर्मचारी, कंपनी द्वारा दी गई विभिन्न छुट्टियों का लाभ नहीं उठा पाते हैं, जिससे उनके कोटे की लीव बची रह जाती हैं। ऐसे में कंपनी या संस्थान द्वारा कुछ अवकाश के बदले में कर्मचारियों को नगद पैसे भी दिए जाते हैं। इस प्रक्रिया को ही हमलोग लीव इंकैशमेंट के नाम से जानते हैं।
यह बात दीगर है कि, सभी कंपनियों में इसको लेकर अलग-अलग नियम हैं, जिनके बारे में कर्मचारियों को पता होना चाहिए, अन्यथा वह घाटे में रह सकते हैं। बताते चलें कि देश की सभी कॉर्पोरेट कंपनियां अपने कर्मचारियों को विभिन्न प्रकार के अवकाश प्रदान करती हैं। इनमें कैजुअल लीव, अर्न्ड लीव, प्रिवलेज लीव और सिक लीव शामिल हैं। अब बात आती है कि किस तरह से हम इनका लाभ उठा सकते हैं।
कम्पनी लॉ (नियम) के मुताबिक, सिक लीव और कैजुअल लीव को आप एक कैलेंडर ईयर में इस्तेमाल कर सकते हैं, अन्यथा इसके बाद ये अपने-आप समाप्त हो जाती हैं। वहीं, आप अर्न्ड लीव और प्रिवलेज लीव का इंकैशमेंट भी करा सकते हैं। इससे कर्मचारियों को आर्थिक मदद मिल जाती है। हालांकि, आपकी कंपनी में इसको लेकर अलग नियम भी हो सकते हैं।
इसे भी पढ़ें: जबर्दस्ती शादी क्या है? झूठ-फरेब द्वारा हुई ऐसी शादी को रद्द किए जाने का कानून क्या है? जानिए विस्तार से….
आमतौर पर एक कैलेंडर वर्ष में ज्यादा से ज्यादा तीस (30) छुट्टियों का लीव इंकैशमेंट कराया जा सकता है। नियम की बात करें तो भारत सरकार भी अपने कर्मचारियों को एक कैलेंडर वर्ष में तीस (30) छुट्टियों को इनकैश कराने की छूट देती है। हालांकि, विभिन्न निजी कंपनियों में इसको लेकर अलग-अलग नियम हैं। कुछ कंपनियां साल खत्म होने के बाद ही लीव इंकैशमेंट करती हैं तो कई कंपनियां कर्मचारी के इस्तीफे के बाद फुल एंड फाइनल हिसाब के दौरान ये काम करती हैं।
कहावत है कि “सुख चाहो खेती करो, धन चाहो व्यापार। नौकरी में है इज्जत, बेइज्जत है व्यवहार।” कहने का तातपर्य यह कि नौकरी करने वालों को इज्जत तो मिलती ही है, साथ ही आवश्यक छुट्टियां न लेकर नियोक्ता के लिए काम करते रहने के एवज में छुटियों का नगदीकरण (लीव इनकैशमेंट) जैसा पुरस्कार भी मिल जाता है। मसलन, लिव इनकैशमेंट का अभिप्राय है कि जब कोई कर्मचारी अपनी बची हुई छुट्टियों को कंपनी से पैसे में बदलवाता है तो उसे स्पष्ट रूप से आर्थिक लाभ मिलता है।
दरअसल, यह तब संभव होता है जब कर्मचारी अपनी ईएल और पीएल नामक छुट्टियों का बिल्कुल इस्तेमाल नहीं कर पाता है, और कंपनी उन बची हुई छुट्टियों के बदले उसे नगद पैसे दे देती हैं। जानकारों के मुताबिक, यह सुविधा आमतौर पर अर्जित अवकाश (एर्नेड लीव) या विशेषाधिकार अवकाश (प्रिविलेज लीव) के लिए ही उपलब्ध होती है, और इसे कंपनी छोड़ने या सेवानिवृत्ति के समय लिया जा सकता है। हालांकि, कुछ कंपनियां साल के अंत में भी लीव इनकैशमेंट की अनुमति देती हैं।
इसलिए हरेक कर्मचारी को, जिन्हें लीव इनकैशमेंट की सहूलियत प्राप्त है, इसके बारे में कुछ मुख्य बातें अवश्य पता होनी चाहिए, जो निम्नलिखित है:-
पहला, छुट्टियों का नकदीकरण अर्थात लीव इनकैशमेंट, जिसका मतलब है कि आप अपनी बची हुई छुट्टियों को पैसों में बदल सकते हैं।
दूसरा, कंपनी के नियम अर्थात प्रत्येक कंपनी के अपने नियम और शर्तें होती हैं, इसलिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि आपकी कंपनी में लीव इनकैशमेंट कैसे काम करता है।
तीसरा, अधिकतम सीमा अर्थात आमतौर पर, एक कैलेंडर वर्ष में अधिकतम 30 छुट्टियों को कैश कराने का नियम होता है, लेकिन यह कंपनी पर निर्भर करता है।
चतुर्थ, सेवानिवृत्ति या नौकरी छोड़ने पर अर्थात लीव इनकैशमेंट आमतौर पर तब मिलता है जब कोई कर्मचारी नौकरी छोड़ता है या सेवानिवृत्त होता है।
पंचम, टैक्स अर्थात लीव इनकैशमेंट पर टैक्स लग सकता है, लेकिन कुछ मामलों में सरकार द्वारा छूट भी दी जाती है।
छठा, गणना अर्थात लीव इनकैशमेंट की गणना आमतौर पर कर्मचारी के मूल वेतन और महंगाई भत्ते (डीए) के आधार पर की जाती है।
सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि कंपनियां छुट्टियों के बदले पैसे का भुगतान किस तरह से करती हैं। अगर आपको लगता है कि लीव इंकैशमेंट प्रति छुट्टी के हिसाब से होता है तो आपको कन्फ्यूजन दूर करने की जरूरत है। दरअसल, कंपनियां अपने कर्मचारियों को उनकी बेसिक सैलरी और डीए के हिसाब से लीव इंकैशमेंट के तहत भुगतान करती हैं।
उदाहरणतया, मान लीजिए कि एक कर्मचारी के पास एक सौ (100) अर्जित छुट्टियां हैं, और उसका दैनिक वेतन (मूल वेतन+डीए) ₹2000 है। अगर वह इन एक सौ (100) छुट्टियों को नगद (कैश) कराता है, तो उसे 100 * (2000/30) = ₹6666.67 मिलेंगे। यह मानते हुए कि महीने में 30 दिन हैं। लेकिन यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि सिक लीव और कैजुअल लीव आमतौर पर लैप्स हो जाती हैं और इन्हें कैश नहीं कराया जा सकता, हालांकि इसके कुछ अपवाद भी हो सकते हैं।
जानकार बताते हैं कि अभी तक प्राइवेट सेक्टर के कर्मचारियों को लीव इनकैशमेंट पर तीन (3) लाख रुपये तक की छूट दी जा रही थी। लेकिन अब सरकार ने इसे बढ़ा कर पच्चीस (25) लाख कर दिया है। आपको बता दें कि इस टैक्स बेनिफिट का लाभ कर्मचारी को तब मिलेगा, जब वो नौकरी बदलेंगे या फिर रिटायर होंगे।
वहीं, अगर आप नौकरी के दौरान छुट्टी की जगह कैश ले रहें हैं तो इस लीव इनकैशमेंट पर आपको टैक्स भरना पड़ेगा, क्योंकि इसे भी सैलरी का हिस्सा माना जाता है। इस प्रकार से लीव इनकैशमेंट पर टैक्स की गणना के लिए, आपको अपने वित्तीय सलाहकार या कर विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए।
– कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार
		