हर व्यक्ति के जीवन में कभी न कभी तरक्की पाने या आगे बढने का अवसर जरूर आता है। कुछ इसका पूरा फायदा उठाते हुए इतिहास के पन्नों पर तरक्की और कामयाबी के नये अध्याय लिखते हें। तो वहीं कुछ लोग उसे कठिनाई के रूप में देखते हुए उससे अपना पीछा छुड़ा लेते हैं। दरअसल, हम जिसे आपदा समझते हैं, उसमें भी एक अवसर छिपा रहता है। बुद्धिमान लोग ऐसे अवसरों को पहचान कर उससे मनचाहा लक्ष्य प्राप्त करते हैं। ऐसी आपदाएं किसी देश के जीवनकाल में भी आती हैं। अगर शासन की बागडोर समझदार, राष्ट्रभक्त और दूरदर्शी नेता के हाथों में हो तो वो किसी भी आपदा को अवसर में बदल कर इतिहास में अपना नाम दर्ज करवाता है।
आज भारत के सामने ट्रंप टैरिफ की आपदा मुंह बाए खड़ी है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 50 फीसदी टैरिफ लगाया है। इसमें रूस से तेल खरीदने पर लगने वाला 25 फीसदी जुर्माना भी शामिल है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ को लेकर की जा रही मनमानी के आगे भारत ने घुटने टेकने से साफ मना कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस आपदा को अवसर की तरह देख रहे हैं। साथ ही भारत पूरी दुनिया को बता रहा है कि वह एक मजबूत देश है और दुनिया के तमाम देश उस पर भरोसा करते हैं। उसी क्रम में पीएम मोदी ने 29 अगस्त को जापान की धरती से बड़ा संदेश दिया है। पीएम मोदी ने कहा है, ‘अब पूरी दुनिया सिर्फ भारत को देख ही नहीं रही, बल्कि उस पर भरोसा भी कर रही है।’
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ट्रंप टैरिफ ने भारत के सामने नई चुनौती रखी है। वहीं तस्वीर का दूसरा रूख यह है कि ट्रंप टैरिफ भारत को आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा देता है। स्वतंत्रता दिवस समारोह के दौरान दिल्ली के लाल किले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत बनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, “हमें आत्मनिर्भर बनने की जरूरत है। लेकिन हताशा में नहीं बल्कि खुद पर गर्व करते हुए. दुनिया भर में आर्थिक स्वार्थ बढ़ रहा है और हमें अपनी मुश्किलों का रोना नहीं रोना चाहिए। हमें इनसे ऊपर उठकर दूसरों के चंगुल से बचना होगा।”
बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात में सुजुकी मोटर्स के कार्यक्रम में स्वदेशी की पुरजोर वकालत और उसकी नई व्याख्या से लोगों को चौंका दिया है। उन्होंने कहा, ‘पैसा किसका लगता है…वो डॉलर है, पाउंड है, वो करंसी काली है, गोरी है, मुझे कोई लेना-देना नहीं है। पैसा किसी का, पसीना हमारा। पैसा कहीं से आए, पसीना यहां का लगे।’
जहां तक आत्मनिर्भरता की बात है तो तमाम प्रधानमंत्री उसका जिक्र करते रहे हैं। लालबहादुर शास्त्री ने तो अमेरिकी कानून पीएल 480 के तहत आने वाले गेहूं का आयात बंद कर दिया था क्योंकि अमेरिका इससे भारत की विदेश नीति प्रभावित करने की कोशिश में था। अमेरिकी गेहूं का आयात बंद होने से ही हरित क्रांति का रास्ता खुला और देश अनाज के उत्पादन में आत्मनिर्भर हो सका। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी स्वावलंबन के इस नारे को आगे बढ़ाया। लेकिन स्वदेशी को आंदोलन बनाने की घोषणा किसी ने नहीं की। वे बदलती दुनिया के साथ कदमताल को जरूरी मानते थे।
अमेरिका के साथ व्यापार समझौते की कोशिशें अब भी जारी हैं। लेकिन इसमें सबसे बड़ा रोड़ा भारत की विदेश नीति को पूरी तरह बदलने की ट्रंप की जिद है। कृषि क्षेत्र को ज्यादा से ज्यादा खोलने जैसे मुद्दे भी रुकावट बने हुए हैं। अमेरिका सिर्फ व्यापार नहीं करना चाहता, वह एक ऐसा पार्टनर चाहता है जो उसके सहायक की भूमिका में हो। वह चाहता है कि भारत, रूस या दुनिया के बाकी देशों से व्यापार ही नहीं सामरिक संबंध भी उसकी मर्जी के हिसाब से तय करे। जाहिर है कि भारत, पाकिस्तान की तरह उसका पिछलग्गू नहीं बन सकता। ऐसे में अपने फैसले खुद लेने की आजादी और राष्ट्रीय गौरव बरकरार रखने की सोचते समय स्वाधीनता संग्राम को याद करना और स्वदेशी का ध्यान आना स्वाभाविक ही है।
जानकारों के मुताबिक केंद्र सरकार को आत्मनिर्भर बनने की दिशा में ज्यादा से ज्यादा कदम उठाए जाने चाहिए। छोटे उद्योगों को प्रोत्साहन देना चाहिए। कृषि उत्पादों में नयी तकनीक लगाकर किसान की मदद करके नए बाजारों तक पहुचाएं। घरेलू उद्योगों को प्रोत्साहन दें। हमें शिक्षा और ग्रामीण विकास पर ध्यान देना होगा। भारत को कृषि क्षेत्र और कुटीर उद्योगों पर ध्यान देना चाहिए। अगर ग्रामीण स्तर पर उत्पादन बढ़ेगा तो आयात कम होगा और रोजगार भी बढ़ेंगे। आत्मनिर्भरता केवल उद्योग से नहीं, बल्कि स्थानीय संसाधनों के सही इस्तेमाल से संभव है।
यह अवसर है जब स्टार्टअप और एमएसएमई को नीतिगत समर्थन दिया जाए। अगर छोटे और मध्यम उद्योगों को सस्ता ऋण और तकनीकी मदद मिले, तो वे वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। यही भारत को नई आर्थिक ताकत देगा। यह समय है कि हम विदेशी आयात पर निर्भरता कम कर अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाएं। सरकार को उद्योगों को प्रोत्साहन देना चाहिए ताकि मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत को सशक्त आधार मिले। यही विकास का स्थायी रास्ता होगा।
पीएम मोदी ने अमेरिका को साफ संदेश दे दिया है कि भारत किसी भी दबाव में झुकने वाला नहीं है। इसी बीच जर्मन अखबार फ्रैंकफर्टर ऑलगेमाइन जितुंग ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि भारत पर टैरिफ लगाने के बाद ट्रंप ने पीएम मोदी को 4 बार कॉल किया, लेकिन उन्होंने रिसीव ही नहीं किया। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि ट्रंप के टैरिफ से नाराज भारत सरकार अमेरिका से कोई आसान डील नहीं करना चाहती। हेंड्रिक अंकेनब्रांड, विनांड वॉर्न पीटर्सडॉफ, गुस्ताव थाइले ने लिखे अपने लेख में कहा कि यह भारत सरकार की बदली हुई नीति का उदाहरण है। अमेरिका से नाराज होकर भारत, चीन और रूस से अपने संबंध बेहतर बनाने में जुट चुका है। वर्तमान में प्रधानमंत्री मोदी जापान और चीन की यात्रा पर हैं।
कोरोना महामारी के दौरान जब वैश्विक सप्लाई चेन टूट गई थी, तब भी देश ने आत्मनिर्भरता का महत्व समझा। अब डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ कदमों ने भी भारत को यह सिखाया है कि हमें अपने उद्योगों, किसानों और तकनीक को आत्मनिर्भर बनाना ही होगा। आत्मनिर्भर बने बिना आर्थिक और तकनीकी आजादी असंभव है। आज भारत में बनी कारें और इलेक्ट्रॉनिक सामान दुनिया भर में छा रहे हैं। रक्षा से लेकर डिजिटल तकनीक तक, आत्मनिर्भरता का यह अभियान अब केवल नारा नहीं, बल्कि भारत के भविष्य की सबसे बड़ी आर्थिक रणनीति बन चुका है। हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान रक्षा क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भरता ने अहम भूमिका निभाई। स्वदेशी हथियारों और तकनीक की मदद से भारत ने तेजी और कुशलता से सफलता हासिल की। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि भारत रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर न होता, तो यह उपलब्धि संभव नहीं थी।
प्रधानमंत्री मोदी ने दुकानदारों से भी अपील की है कि वे अपनी दुकानों के बाहर लिखें “यहां स्वदेशी सामान मिलता है।” यह केवल नारा नहीं, बल्कि आर्थिक स्वतंत्रता की दिशा में बड़ा कदम है। ‘मेक इन इंडिया’, ‘स्टार्ट-अप इंडिया’, ‘डिजिटल इंडिया’ और अब ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे अभियानों का मकसद यही है कि देश का उद्योग और तकनीक दुनिया के मुकाबले खड़ा हो सके। आज भारत तेज़ी से मैन्युफैक्चरिंग हब बनता जा रहा है। अमेरिका के टैरिफ बढ़ाने या गैर-टैरिफ बैरियर लगाने के बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था और उद्योग नई ऊंचाइयां छू रहे हैं।
– डॉ. आशीष वशिष्ठ,
स्वतंत्र पत्रकार
(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
