अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने आज अपने सोशल मीडिया मंच ट्रुथ सोशल पर घोषणा की कि 1 अक्टूबर 2025 से अमेरिका कई आयातित वस्तुओं पर भारी टैरिफ लगाने जा रहा है। इनमें सबसे बड़ा कदम फार्मास्यूटिकल उत्पादों पर 100% टैरिफ का है। ट्रम्प ने कहा कि जिन कंपनियों ने अमेरिका में उत्पादन संयंत्र का निर्माण शुरू कर दिया है, उन पर यह नियम लागू नहीं होगा। यदि उनका उत्पादन अमेरिका के भीतर नहीं हो रहा है तो उन पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगेगा।
इसके अलावा, रसोई कैबिनेट और बाथरूम वैनिटी पर 50%, अपहोल्स्टर्ड फर्नीचर पर 30% और हैवी ट्रक्स पर 25% टैरिफ लगाया जाएगा। ट्रम्प ने तर्क दिया कि यह कदम अमेरिकी उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाने और राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने के लिए उठाया जा रहा है। उन्होंने यह भी दावा किया कि टैरिफ लगाने से अमेरिका में निवेश बढ़ेगा और घरेलू विनिर्माण क्षेत्र को प्रोत्साहन मिलेगा। हालाँकि हालिया आँकड़े बताते हैं कि अमेरिकी उद्योगों में रोजगार घटा है। अप्रैल से अब तक विनिर्माण क्षेत्र में 42000 नौकरियाँ और निर्माण क्षेत्र की 8000 नौकरियाँ कम हुई हैं।
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देखा जाये तो यह घोषणा केवल अमेरिका तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि उन देशों पर भी असर डालेगी जो वहाँ अपने उत्पादों का निर्यात करते हैं। भारत, जो विश्व स्तर पर दवाओं का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक देशों में से है, इस नीति से गहराई से प्रभावित हो सकता है। हम आपको बता दें कि अमेरिका भारतीय दवा कंपनियों के लिए सबसे बड़ा बाज़ार है। भारत से अमेरिका को जेनेरिक दवाओं का निर्यात लगातार बढ़ा है, परंतु कुछ कंपनियाँ ब्रांडेड और पेटेंटेड दवाओं का भी कारोबार करती हैं। 100% टैरिफ के बाद भारतीय दवाएँ अमेरिकी बाज़ार में दोगुनी कीमत पर पहुँचेंगी। इसका सीधा असर माँग पर पड़ेगा और भारतीय कंपनियों की प्रतिस्पर्धा क्षमता घटेगी। यदि यह स्थिति बनी रही तो भारत की फार्मा कंपनियों को भारी राजस्व हानि हो सकती है। साथ ही, अमेरिकी बाज़ार पर अधिक निर्भर कंपनियाँ वित्तीय संकट का सामना कर सकती हैं।
इसके अलावा, भारत से अमेरिका को फर्नीचर और कैबिनेट का भी निर्यात होता है। हालाँकि यह चीन और वियतनाम की तुलना में कम है, परंतु भारत की बढ़ती हिस्सेदारी को यह नया टैरिफ झटका देगा। फर्नीचर और कैबिनेट महँगे होने से अमेरिकी उपभोक्ताओं की मांग घटेगी और भारतीय निर्यातकों का नुकसान होगा। जहाँ तक हैवी ट्रक्स का सवाल है तो इस क्षेत्र में भारत का अमेरिका में सीधा निर्यात नगण्य है। इसलिए इस पर प्रत्यक्ष प्रभाव कम होगा। लेकिन वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में बदलाव से भारतीय वाहन उद्योग पर परोक्ष दबाव पड़ सकता है।
देखा जाये तो यह टैरिफ नीति “अमेरिका फर्स्ट” दृष्टिकोण की ओर इशारा करती है, जो वैश्विक व्यापार को संकुचित बना रही है। इसलिए भारत को अमेरिका पर निर्भरता घटाकर यूरोप, अफ्रीका और एशिया के नए बाज़ारों पर ध्यान देना होगा। साथ ही कुछ भारतीय कंपनियाँ अमेरिका में उत्पादन संयंत्र लगाने की दिशा में कदम बढ़ा सकती हैं ताकि टैरिफ से बच सकें। इसके अलावा, भारत को अमेरिकी प्रशासन के साथ उच्च स्तरीय वार्ता करनी होगी ताकि कम-से-कम जेनेरिक दवाओं को राहत मिल सके।
इसमें कोई दो राय नहीं कि ट्रम्प की घोषणा भारत के लिए चेतावनी है। फार्मा सेक्टर सबसे बड़ा झटका झेलेगा, क्योंकि यह भारत के निर्यात और रोजगार का अहम आधार है। अल्पकाल में कंपनियों का मुनाफा घटेगा और बाज़ार की हिस्सेदारी सिकुड़ेगी। दीर्घकाल में यदि भारत नए बाज़ार खोज लेता है और घरेलू उत्पादन में निवेश बढ़ाता है, तो इस संकट को अवसर में बदला जा सकता है।
बहरहाल, टैरिफ की यह नई दीवार भारत के लिए कठिनाई लेकर आएगी। यह दिखाता है कि वैश्विक व्यापार अब पहले जैसा उदार नहीं रहा, और हर देश अपने उद्योगों को बचाने में जुटा है। भारत को इस परिस्थिति में लचीली नीति, विविधीकृत निर्यात रणनीति और मज़बूत कूटनीतिक प्रयासों से ही आगे बढ़ना होगा।
