टीसीएस ने हाल ही में अपने वैश्विक कार्यबल में लगभग 2% (करीब 12,000–12,261) कर्मचारी निकालने की घोषणा की है, जो मध्य और वरिष्ठ स्तर के कर्मचारियों को अधिक प्रभावित करेगी। हालांकि कुछ रिपोर्ट्स में इसे एआई चालित तकनीकी बदलावों का नतीजा बताया जा रहा है, लेकिन कंपनी के सीईओ ने स्पष्ट किया है कि यह मूलतः स्किल मिसमैच (skill mismatch) की वजह से किया जा रहा है, न कि सीधे AI द्वारा ऑटोमेशन की वजह से। हम आपको बता दें कि टीसीएस के CEO ने कहा है कि यह AI की वजह से नहीं है बल्कि यह कर्मचारी की स्किल्स और कंपनी की डिमांड के बीच असंगति की वजह से है।
हम आपको बता दें कि टीसीएस के कर्मचारियों की संख्या 30 जून, 2025 तक 6,13,069 थी। टीसीएस ने एक बयान में कहा है कि यह कदम कंपनी की भविष्य के लिए तैयार संगठन बनने की व्यापक रणनीति का हिस्सा है। इसके तहत नई तकनीक के क्षेत्रों में निवेश, नए बाजारों में प्रवेश, ग्राहकों और स्वयं के लिए बड़े पैमाने पर एआई का उपयोग, साझेदारियों को मजबूत करना, अगली पीढ़ी के बुनियादी ढांचे का निर्माण और अपने कार्यबल मॉडल को पुनर्गठित करने पर ध्यान दिया जाएगा। कंपनी ने कहा, ”इस यात्रा के एक भाग के रूप में, हम संगठन से उन सहयोगियों को भी हटाएंगे जिनकी तैनाती संभव नहीं हो सकती है। इसका प्रभाव हमारे वैश्विक कार्यबल के लगभग दो प्रतिशत पर पड़ेगा। इसमें मुख्य रूप से मध्यम और वरिष्ठ श्रेणी के अधिकारी होंगे।” हालांकि टीसीएस ने प्रभावित कर्मचारियों को उचित लाभ, क्षतिपूर्ति, परामर्श और सहायता देने का आश्वासन दिया है लेकिन बड़े पैमाने पर होने वाली इस छंटनी ने बाजार में हलचल मचा दी है।
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यह सवाल तेजी से उठ रहा है कि क्या एआई नौकरियां छीन रहा है? इसके बारे में विश्लेषकों की राय है कि AI led disruptions और बदलती बिजनेस डिमांड के चलते IT कंपनियों को अपनी संरचना बदलनी पड़ रही है। इसलिए, सीधे AI के कारण नौकरी चली गई, ऐसा कहना ठीक नहीं होगा; बल्कि यह टेक्नोलॉजी परिवर्तन, मांग में गिरावट और स्किलिंग की कमी का मिश्रित परिणाम है।
वैश्विक परिदृश्य को देखें तो Goldman Sachs का अनुमान है कि दुनिया भर में 300 मिलियन पूर्णकालिक नौकरियां AI और ऑटोमेशन से प्रभावित हो सकती हैं। वहीं World Economic Forum की रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक 92 मिलियन नौकरियां खत्म हो सकती हैं, लेकिन 170 मिलियन नई नौकरियां भी पैदा हो सकती हैं। इसके अलावा, UNCTAD और अन्य रिपोर्ट्स ग्लोबली लगभग 40% नौकरियों को AI से नजदीकी भविष्य में जोखिम में बताते हैं। वहीं कुछ विश्लेषकों ने अनुमान लगाया है कि 2025 में भारत में 12–18 मिलियन लोग AI चालित ऑटोमेशन की वजह से नौकरियों से वंचित हो सकते हैं।
इसके अलावा, Atomberg के संस्थापक ने चेतावनी दी है कि भारत में 40–50% व्हाइट कालर नौकरियां, विशेषकर IT और BPO क्षेत्रों में खतरे में हैं, जिससे मध्य वर्ग की आर्थिक स्थिति को बड़ा झटका लग सकता है। इसके अलावा, बताया जा रहा है कि 2025 के अंत तक 85 मिलियन नौकरियां ग्राउंड रियलिटी में AI ऑटोमेशन से प्रभावित हो सकती हैं। रिपोर्टों में यहां तक दावा किया गया है कि दुनियाभर में लगभग 14 मिलियन नौकरियां पहले से ही AI के कारण जा चुकी हैं। रिपोर्टें यह भी बताती हैं कि भारत के स्टार्टअप क्षेत्र में सिर्फ शुरुआती 5 महीनों में 3,600+ कर्मचारियों की बर्खास्तगी हुई है, जिसमें AI की वजह से cost cutting की भूमिका भी रही है। देखा जाये तो AI किसी की नौकरी नहीं ले इसके लिए जरूरी है कि स्किल को अपग्रेड किया जाये इसके लिए डिजिटल लिटरेसी, AI complementary कौशल जैसे डेटा साइंस, AI ethics, टीमवर्क आदि की मांग बढ़ रही है।
हम आपको यह भी बता दें कि एक हालिया सर्वेक्षण से पता चला है कि अमेरिका में बड़ी संख्या में कर्मचारी अपनी दैनिक कार्यप्रणाली में AI को शामिल कर रहे हैं और इसके बारे में अपने बॉस को सूचित नहीं कर रहे हैं। Gusto द्वारा विभिन्न उद्योगों के 1,000 अमेरिकी कर्मचारियों पर किए गए सर्वेक्षण में सामने आया कि 80% कर्मचारी कार्यस्थल पर AI का उपयोग कर रहे हैं, जिनमें से 36% इसे अपनी नौकरी के लिए “अनिवार्य” मानते हैं। सर्वे के मुताबिक 45% कर्मचारियों ने प्रबंधकों को बताए बिना AI का उपयोग किया, खासतौर पर जेन Z और तकनीकी क्षेत्र के कर्मचारियों ने। 66% कर्मचारी स्वयं AI टूल्स के लिए भुगतान कर रहे हैं, जो बताता है कि कार्यबल में तकनीक का उपयोग जमीनी स्तर पर बढ़ रहा है। सर्वे के मुताबिक, हर चार में से एक कर्मचारी ने स्वीकार किया कि उन्होंने भर्ती प्रक्रिया के दौरान AI कौशल को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया। मगर अधिकांश ने नौकरी मिलने के बाद ये कौशल सीखे। यह प्रवृत्ति बताती है कि AI-लिटरेट दिखने का दबाव तेजी से बढ़ रहा है, जबकि औपचारिक प्रशिक्षण तक पहुंच सीमित है।
सर्वे के मुताबिक केवल 32% कर्मचारी ही खुलकर बताते हैं कि वे AI का उपयोग कर रहे हैं, जबकि बाकी इसे छिपाते हैं। सर्वे के मुताबिक लगभग 24% कर्मचारियों को लगता है कि कंपनियां AI से आर्थिक लाभ ले रही हैं, जबकि वे खुद लाभान्वित नहीं हो रहे। जहां तक भारतीय आईटी क्षेत्र की चुनौतियाँ हैं तो आपको बता दें कि भारतीय आईटी कंपनियों का हालिया तिमाही प्रदर्शन उम्मीद से कम रहा है। उनके राजस्व और लाभप्रदता में गिरावट आई है। कर्मचारी उपयोग दर घट गई है। ऑर्डर बुक में बढ़ोतरी के बावजूद क्लाइंट भुगतान टाल रहे हैं। Nasscom के अनुसार, आईटी, BPM और R&D सेवाओं में 54 लाख पेशेवर कार्यरत हैं। इनमें से 80% को 2030 तक डिजिटल रूप से सक्षम बनाना होगा।
हम आपको यह भी बता दें कि Anthropic CEO डेरियो अमोडेई ने चेतावनी दी है कि आने वाले 1-5 वर्षों में व्हाइट-कॉलर नौकरियों में 20% तक कमी हो सकती है। Meta, Microsoft, Salesforce जैसी कंपनियां पहले से ही कोडिंग और अन्य कार्यों में AI का उपयोग बढ़ा रही हैं। Amazon ने 30,000 सॉफ्टवेयर एप्लिकेशनों को अपग्रेड करने के लिए AI का उपयोग किया, इस काम में मानव डेवलपर्स को 1 वर्ष लगता। यह काम AI ने 6 महीने में पूरा कर दिया, जिससे कंपनी को 250 मिलियन डॉलर की बचत हुई। इसके अलावा, Microsoft का 20-30% कोड और Meta का लगभग 50% कोड AI द्वारा जनरेट किया जा रहा है।
सवाल उठता है कि क्या AI सचमुच नौकरियाँ खत्म कर देगा? इस पर विशेषज्ञों के बीच मतभेद हैं। जैसे- कई भूमिकाएँ पूरी तरह समाप्त नहीं होंगी, बल्कि बदल जाएँगी। दोहराव वाले कार्य AI करेगा और कर्मचारी अधिक रचनात्मक या रणनीतिक कार्य कर पाएंगे। डॉक्टर, वकील या शिक्षक जैसे पेशों में AI सहायक के रूप में कार्य करेगा, न कि प्रतिस्थापन के रूप में। हम आपको यह भी बता दें कि Meta के चीफ एआई साइंटिस्ट Yann LeCun के अनुसार, “AI अधिकतर कार्यों का केवल एक हिस्सा ही कर सकता है, वह भी पूरी तरह परिपूर्ण नहीं। मानव श्रमिकों का सीधा प्रतिस्थापन संभव नहीं है।”
अब आगे का रास्ता क्या होगा, इसके जवाब में कहा जा सकता है कि कंपनियों और सरकारों को AI प्रशिक्षण, पुनःकौशल और पारदर्शिता पर काम करना होगा। नया सामाजिक अनुबंध तैयार करना होगा, ताकि केवल बड़ी टेक कंपनियां ही लाभ न उठाएं, बल्कि श्रमिकों को भी अवसर मिलें। इसके अलावा, यूनिवर्सल बेसिक इनकम जैसी नीतियां लंबे समय में चर्चा का विषय हो सकती हैं।
बहरहाल, देखा जाये तो AI कार्यक्षेत्र को तेजी से बदल रहा है। यह एक दोधारी तलवार है। जो कर्मचारी नए कौशल सीखेंगे और AI को अपनाएंगे, उनके लिए नए अवसर हैं। जो कौशल-विकास में पीछे रहेंगे, वे नौकरी खोने के जोखिम में होंगे। भारतीय आईटी क्षेत्र में टीसीएस जैसी छंटनियाँ बताती हैं कि कौशल-अंतराल बड़ी चुनौती है। 2030 तक 80% कार्यबल को डिजिटल रूप से सक्षम बनाना जरूरी है। AI के दौर में नौकरी सुरक्षित रखने का एक ही मंत्र है– सतत सीखें, बदलते कौशल को अपनाएँ और AI को सहयोगी बनाएं, प्रतिस्पर्धी नहीं।
(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)