भारत रूस से लगभग 10,000 करोड़ रुपये मूल्य के मिसाइलों की बड़ी खेप खरीदने की योजना बना रहा है। रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, भारतीय वायु सेना अब S-400 मिसाइलों की बड़ी संख्या खरीदने की तैयारी में है और रूस से शेष दो स्क्वाड्रनों की आपूर्ति के लिए बातचीत चल रही है। इससे पहले 2018 में हुए समझौते के तहत पांच स्क्वाड्रनों का अनुबंध हुआ था, जिनमें से तीन पहले ही ऑपरेशनल हो चुके हैं। यह स्पष्ट संकेत है कि भारत की प्राथमिकता अपनी हवाई सीमा की रक्षा और हवाई श्रेष्ठता को सुनिश्चित करना है। इस कदम का सामरिक महत्व किसी भी साधारण रक्षा खरीद से कहीं अधिक है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय वायु सेना (IAF) द्वारा पाकिस्तान के 6-7 लड़ाकू और जासूसी विमान गिराने में S-400 एयर डिफेंस सिस्टम की भूमिका न केवल उल्लेखनीय है, बल्कि यह इस तथ्य का भी प्रमाण है कि आधुनिक हथियारों और रणनीतिक सोच के सही मेल से सीमाओं की सुरक्षा को पूरी तरह मजबूत किया जा सकता है।
S-400 का प्रदर्शन और भारतीय एयर डिफेंस की क्षमता का साक्ष्य स्पष्ट कर चुका है कि यह सिस्टम ‘गेम-चेंजर’ की भूमिका निभा सकता है। पाकिस्तान के आक्रामक प्रयासों के सामने इसकी सफलता ने यह सिद्ध कर दिया कि सीमाओं पर किसी भी खतरे को दूर से ही नष्ट करने की क्षमता अब हमारे हाथ में है। देखा जाये तो यह सिर्फ तकनीकी श्रेष्ठता नहीं है; यह आत्मविश्वास है, यह संदेश है कि भारत अब सिर्फ प्रतिक्रिया देने वाला देश नहीं रहा, बल्कि सक्रिय और निर्णायक ताकत बन चुका है।
सामरिक दृष्टि से देखा जाए तो रूस से लगभग 10,000 करोड़ रुपये मूल्य के मिसाइलों की बड़ी खेप खरीदने की योजना केवल पाकिस्तान के खतरों तक सीमित नहीं है। S-400 और आगे संभावित S-500 सिस्टम की खरीद, भारत को दक्षिण एशिया और उसके परे रणनीतिक मजबूती प्रदान करती है। इससे न केवल पड़ोसी देशों में हमारे सामरिक दायरे का सम्मान बढ़ेगा, बल्कि भारत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी एक प्रभावशाली रक्षा शक्ति के रूप में पेश करेगा। इसके अतिरिक्त, रूस के साथ मिलकर ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल और इसके संस्करणों की क्षमता बढ़ाने की बातचीत यह संकेत देती है कि भारत न केवल आयातक है, बल्कि तकनीकी सहयोग और संयुक्त विकास में भी भागीदार बन रहा है।
यह कदम भारत की रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता (Atmanirbhar Bharat) की दिशा में भी महत्वपूर्ण है। भले ही रूस से हथियारों की खरीद जारी है, लेकिन भारत ने इन प्रणालियों के स्थानीय उपयोग, संशोधन और भविष्य में घरेलू उत्पादन की संभावनाओं पर भी ध्यान दिया है। S-400 और ब्रह्मोस मिसाइल प्रोजेक्ट्स में स्थानीय इंजीनियरिंग और तकनीकी दक्षता को शामिल करने से भारतीय रक्षा उद्योग को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता मिल रही है। यह केवल हथियारों की खरीद नहीं है; यह रणनीतिक साझेदारी और तकनीकी आत्मनिर्भरता की नींव है।
संपर्क और सहयोग के राजनीतिक आयाम भी इस कदम को और महत्वपूर्ण बनाते हैं। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की दिसंबर में भारत यात्रा के दौरान इस दिशा में नई पहलें और समझौते संभव हैं। यह द्विपक्षीय रक्षा सहयोग केवल उपकरणों तक सीमित नहीं होगा, बल्कि प्रशिक्षण, तकनीकी हस्तांतरण और संयुक्त परियोजनाओं में भी विस्तार करेगा। यह भारत की रक्षा क्षमताओं को दीर्घकालिक मजबूती प्रदान करेगा और भू-राजनीतिक संतुलन में भारत की स्थिति को और मजबूत करेगा।
सामरिक और तकनीकी दृष्टि से यह निर्णय इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत ने अपनी हवाई सीमा पर खतरे को समय रहते पहचानने और उन्हें रोकने की क्षमता हासिल कर ली है। यह सिर्फ मिसाइलों का महत्व नहीं है; यह भारत की रणनीतिक सोच और पूर्वाभास की क्षमता का प्रमाण है। यदि आवश्यकता पड़ी, तो यह सिस्टम तत्काल प्रतिक्रिया देने और आक्रामक तत्वों को दूर रखने में सक्षम है। यह हमारी नई सामरिक संस्कृति को दर्शाता है, जिसमें आत्मविश्वास, तैयारी और तकनीकी श्रेष्ठता का संपूर्ण मेल है।
कुल मिलाकर देखें तो S-400 मिसाइलों की नई खरीद भारत के सामरिक आत्मविश्वास, सीमा सुरक्षा और रक्षा उद्योग में आत्मनिर्भरता का प्रतीक है। यह कदम न केवल पड़ोसी देशों के सामने स्पष्ट संदेश भेजता है कि भारत अब केवल रक्षात्मक नहीं बल्कि सक्रिय सामरिक शक्ति बन चुका है, बल्कि यह देश की रक्षा उद्योग की वैश्विक क्षमताओं को भी नई दिशा प्रदान करता है। भविष्य में यदि भारत अपनी S-400 और S-500 क्षमताओं को और विकसित करता है, ब्रह्मोस जैसे हथियारों का आधुनिकीकरण करता है, तो यह भारत को न केवल आत्मनिर्भर बनाएगा, बल्कि एक वैश्विक सामरिक खिलाड़ी के रूप में उसकी स्थिति को भी मजबूती देगा।
इसलिए यह निर्णय सिर्फ मिसाइलों की खरीद का मामला नहीं है; यह भारत की नई सामरिक पहचान और आत्मनिर्भरता का ऐतिहासिक कदम है। अब समय आ गया है कि भारत न केवल अपने आकाश को सुरक्षित करे, बल्कि अपनी रक्षा क्षमताओं में दुनिया के सबसे प्रभावशाली देशों के पंक्तियों में खुद को स्थापित करे।