पाकिस्तान और अमेरिका के बीच हालिया आतंकवाद-रोधी वार्ता सतही तौर पर क्षेत्रीय स्थिरता की दिशा में एक कदम लग सकती है, लेकिन इसके राजनीतिक निहितार्थ भारत के लिए चिंताजनक हैं। अमेरिका द्वारा बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी को विदेशी आतंकी संगठन घोषित करने के बाद पाकिस्तान को यह अवसर मिल सकता है कि वह भारत के खिलाफ अपने पुराने आरोपों को नए सिरे से अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाए। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई का यह संयुक्त एजेंडा, अगर पाकिस्तान के नैरेटिव की ओर झुकता है, तो भारत के लिए एक कूटनीतिक चुनौती बन सकता है।
दूसरी ओर, सिंधु जल संधि पर पाकिस्तान का आक्रामक रवैया और प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ के उकसावे भरे बयान यह स्पष्ट करते हैं कि पानी का मुद्दा केवल संसाधन प्रबंधन का नहीं, बल्कि पाकिस्तान की ‘स्ट्रेटेजिक ब्लैकमेल’ नीति का हिस्सा है। पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा संधि को अस्थायी रूप से निलंबित करना पाकिस्तान को असहज कर रहा है और वह इसे युद्ध की धमकी में बदलने की कोशिश कर रहा है। यह स्थिति भारत के लिए अवसर और जोखिम दोनों पैदा करती है— अवसर इस बात का कि वह अपनी जल नीति के जरिए आतंकवाद पर दबाव बढ़ा सकता है और जोखिम इस बात का कि पाकिस्तान इसे अंतरराष्ट्रीय विवाद का रूप देने की कोशिश करेगा।
इस बीच, आयरलैंड के राष्ट्रपति माइकल डी. हिगिंस का भारतीय समुदाय पर हुए नस्लीय हमलों की स्पष्ट निंदा करना और भारत-आयरलैंड के ऐतिहासिक संबंधों को रेखांकित करना, भारत की सॉफ्ट पावर और अंतरराष्ट्रीय साख के लिए सकारात्मक संकेत है। यह न केवल प्रवासी भारतीयों की सुरक्षा के लिए एक मजबूत संदेश है, बल्कि यूरोपीय देशों में भारत की कूटनीतिक पकड़ को भी गहरा करता है। समग्र रूप से ये तीन घटनाएं भारत के लिए अलग-अलग मोर्चों पर सक्रिय रहने की आवश्यकता बताती हैं। जहां एक तरफ उसे आतंकवाद के नैरेटिव को नियंत्रित रखना है, वहीं जल संसाधनों पर रणनीतिक बढ़त बनाए रखनी है और वैश्विक स्तर पर अपने नागरिकों की सुरक्षा तथा सांस्कृतिक प्रभाव को मजबूत करना है। यही बहुआयामी संतुलन आने वाले समय में भारत की विदेश नीति की असली कसौटी होगा।
जहां तक अमेरिका और पाकिस्तान के बीच हुई वार्ता की बात है तो आपको बता दें कि इस्लामाबाद में पाकिस्तान और अमेरिका के बीच हुए काउंटर-टेररिज़्म डायलॉग में दोनों देशों ने बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA), ISIS-खोरासान और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) जैसे आतंकी संगठनों से निपटने के लिए सहयोग बढ़ाने का निर्णय लिया है। यह संवाद ठीक उस दिन के बाद हुआ जब अमेरिका ने BLA को Foreign Terrorist Organisation घोषित किया।
बैठक के बाद जारी संयुक्त बयान के अनुसार, ‘‘दोनों प्रतिनिधिमंडलों ने बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी, आईएस-खुरासान और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान से उत्पन्न खतरों सहित आतंकी खतरों से निपटने के लिए प्रभावी रणनीतियां बनाने के महत्व पर जोर दिया।’’ पाकिस्तान और अमेरिका के बीच ‘‘लंबे समय से चली आ रही साझेदारी’’ को दोहराते हुए, दोनों पक्षों ने कहा कि आतंकवाद से निपटने और शांति एवं स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए ‘‘लगातार संवाद’’ बेहद जरूरी है। अमेरिका ने पाकिस्तान की ‘‘उन आतंकवादी संगठनों पर काबू पाने में लगातार सफलताओं की सराहना की, जो क्षेत्र और दुनिया की शांति व सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करते हैं।’’ दोनों प्रतिनिधिमंडलों ने इस बात पर जोर दिया कि सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने और आतंकवादी उद्देश्यों के लिए उभरती तकनीकों के इस्तेमाल को रोकने के लिए मजबूत संस्थागत ढांचा तैयार करना तथा क्षमताओं का विकास करना जरूरी है। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र समेत बहुपक्षीय मंचों पर करीबी सहयोग करने और ‘‘आतंकवाद से निपटने के प्रभावी और टिकाऊ तरीकों को बढ़ावा देने’’ के अपने इरादे को भी दोहराया। हम आपको बता दें कि हाल के महीनों में पाकिस्तान और अमेरिका के रिश्तों में उल्लेखनीय सुधार हुआ है, जिसका प्रमाण सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर की अमेरिका में लगातार यात्राएं और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सहित उच्च स्तरीय मुलाकातें हैं।
दूसरी ओर, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ का बयान कि “भारत पाकिस्तान का एक बूँद पानी भी नहीं छीन सकता”, सिंधु जल संधि (1960) पर बढ़ते तनाव का संकेत है। देखा जाये तो पाकिस्तान स्पष्ट कर रहा है कि वह पानी के मुद्दे को सिर्फ कूटनीतिक नहीं, बल्कि सैन्य मोर्चे पर भी ले जाएगा। इसमें कोई दो राय नहीं कि जल संधि भारत के पास एक मजबूत दबाव-युक्ति है, लेकिन इसका इस्तेमाल सावधानी से करना होगा ताकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय में इसे ‘हाइड्रो-वारफेयर’ के रूप में पेश न किया जा सके।
तीसरी ओर, आयरलैंड के राष्ट्रपति माइकल डी. हिगिंस ने हाल ही में भारतीय समुदाय पर हुए नस्लीय हमलों की कड़ी निंदा करते हुए भारत-आयरलैंड के ऐतिहासिक संबंधों को रेखांकित किया है। उन्होंने बताया है कि दोनों देशों के बीच स्वतंत्रता आंदोलन, संवैधानिक विकास और सामाजिक सुधारों में साझा विरासत है। हम आपको बता दें कि विश्वभर में भारतीय समुदाय की सुरक्षा भारत की विदेश नीति का अहम हिस्सा है। ऐसे हमलों पर त्वरित प्रतिक्रिया न केवल नागरिकों की रक्षा करती है बल्कि भारत की वैश्विक साख भी बढ़ाती है। इसके साथ ही आयरलैंड जैसे यूरोपीय देश के साथ ऐतिहासिक-राजनीतिक संबंधों को मजबूत करना, भारत के यूरोपीय संघ में प्रभाव विस्तार की दिशा में सहायक है। इसके अलावा, आयरलैंड में भारतीयों का योगदान और सांस्कृतिक उपस्थिति, भारत की सॉफ्ट पावर को यूरोप में स्थायी बनाता है।
बहरहाल, इन तीनों घटनाओं में भारत के लिए तीन अलग-अलग सामरिक मोर्चे साफ दिखते हैं। 1. आतंकवाद-रोधी वैश्विक विमर्श में अपनी स्थिति मज़बूत रखना, ताकि पाकिस्तान की प्रोपेगेंडा राजनीति को काटा जा सके। 2. जल संसाधनों को कूटनीतिक दबाव के साधन के रूप में सावधानीपूर्वक उपयोग करना, ताकि राष्ट्रीय हित सुरक्षित रहें और अंतरराष्ट्रीय छवि प्रभावित न हो। 3. भारतीय डायस्पोरा की सुरक्षा और वैश्विक मंचों पर सॉफ्ट पावर का विस्तार, जिससे भारत की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा और राजनीतिक पूंजी दोनों बढ़ें। भारत के लिए यह समय बहुआयामी रणनीति का है जहां कठोर शक्ति के साथ-साथ कूटनीतिक चतुराई और सांस्कृतिक प्रभाव का संतुलित उपयोग ही उसे वैश्विक शक्ति-संतुलन में लाभ की स्थिति में रख सकता है।