कांग्रेस में नेतृत्व और भविष्य की राजनीति को लेकर एक बार फिर हलचल तेज हो गई है। पार्टी सांसद इमरान मसूद के उस बयान के बाद बहस ने जोर पकड़ लिया है जिसमें उन्होंने वायनाड की सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा को प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनाए जाने की वकालत की है। इस बयान के बाद कांग्रेस के भीतर और बाहर यह सवाल उठने लगा है कि क्या पार्टी राहुल गांधी के अलावा किसी नए चेहरे पर गंभीरता से विचार कर रही है।
इस पूरे घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा ने कहा है कि देश के अलग अलग हिस्सों से यह मांग उठ रही है कि प्रियंका गांधी को आगे आना चाहिए। साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि उन्हें स्वयं राजनीति में प्रवेश करना चाहिए। हालांकि उन्होंने साफ किया कि इस समय सबसे जरूरी है जनता से जुड़े असली मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना, न कि व्यक्तियों के नामों पर बहस करना। इससे पहले कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने एक समाचार एजेंसी से बातचीत में कहा था कि यदि प्रियंका गांधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया जाए तो वह अपनी दादी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तरह सख्त जवाब देने में सक्षम होंगी। हम आपको बता दें कि इमरान मसूद यह टिप्पणी बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ती हिंसा को लेकर प्रियंका गांधी की प्रतिक्रिया का बचाव करते हुए कर रहे थे। उनका कहना था कि इंदिरा गांधी ने अपने समय में पाकिस्तान को ऐसा नुकसान पहुंचाया जिसकी टीस आज भी महसूस की जाती है और प्रियंका गांधी उसी परंपरा की नेता हैं।
हम आपको बता दें कि कांग्रेस की परंपरागत राजनीति में अब तक राहुल गांधी को ही पार्टी का मुख्य चेहरा माना जाता रहा है, खासकर भारतीय जनता पार्टी की मजबूत स्थिति के मुकाबले। ऐसे में इमरान मसूद का बयान पार्टी की स्थापित लाइन से अलग नजर आया और इसने आंतरिक समीकरणों को लेकर अटकलों को हवा दे दी। हम आपको बता दें कि प्रियंका गांधी वाड्रा ने हाल ही में बांग्लादेश में हिंदू, ईसाई और बौद्ध अल्पसंख्यकों पर हो रही हिंसा को लेकर केंद्र सरकार से सख्त रुख अपनाने की मांग की थी। उन्होंने सोशल मीडिया मंच एक्स पर लिखा था कि बांग्लादेश में हिंदू युवक दीपु चंद्र दास की भीड़ द्वारा की गई निर्मम हत्या बेहद चिंताजनक है और किसी भी सभ्य समाज में धर्म, जाति या पहचान के आधार पर हिंसा मानवता के खिलाफ अपराध है। उन्होंने भारत सरकार से आग्रह किया कि वह इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए बांग्लादेश सरकार के समक्ष अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का प्रश्न मजबूती से उठाए।
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देखा जाये तो यह पूरा प्रसंग कांग्रेस की राजनीति में छिपी बेचैनी और तलाश को उजागर करता है। एक ओर पार्टी औपचारिक रूप से राहुल गांधी को अपना नेता मानती है, वहीं दूसरी ओर प्रियंका गांधी का नाम बार बार उभरना यह संकेत देता है कि कांग्रेस अभी भी करिश्माई नेतृत्व की खोज में है। इमरान मसूद जैसे नेताओं के बयान यूं ही नहीं आते। वे पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों के बीच मौजूद भावनाओं की अभिव्यक्ति भी होते हैं।
देखा जाये तो प्रियंका गांधी की भाषा और तेवर में हाल के वर्षों में स्पष्ट आक्रामकता दिखी है। बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हिंसा का मुद्दा उठाकर उन्होंने न केवल विदेश नीति से जुड़े मानवीय पहलू को छुआ बल्कि घरेलू राजनीति में भी सत्तारुढ़ दल को असहज करने की कोशिश की। यही वजह है कि उनके समर्थक उन्हें एक निर्णायक नेतृत्व के रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं। वहीं रॉबर्ट वाड्रा का यह स्वीकार करना कि प्रियंका के राजनीति में आने की मांग हर तरफ से उठ रही है, अपने आप में बहुत कुछ कह देता है।
बहरहाल, इस घटनाक्रम के राजनीतिक निहितार्थ दूरगामी हो सकते हैं। पहला, कांग्रेस के भीतर नेतृत्व को लेकर बहस फिर सतह पर आ गई है। दूसरा, प्रियंका गांधी का नाम प्रधानमंत्री पद से जोड़ा जाना उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर एक वैकल्पिक चेहरे के रूप में मजबूत करता है। यदि कांग्रेस आने वाले समय में प्रियंका गांधी को अधिक प्रमुख भूमिका देती है तो यह पार्टी की रणनीति में बड़ा बदलाव होगा। वहीं यदि पार्टी इस बहस को दबाने की कोशिश करती है तो असंतोष भीतर ही भीतर पकता रह सकता है। साफ है कि यह विवाद सिर्फ एक बयान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह कांग्रेस की दिशा और दशा पर गहरे सवाल खड़े करता है।
