लगभग छह दशकों के बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में किसी सीरियाई राष्ट्रपति की मौजूदगी अंतरराष्ट्रीय राजनीति को नई दिशा देने जा रही है। हम आपको बता दें कि सीरिया के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति अहमद हुसैन अल-शर्रा, जिन्हें उनके पूर्व नाम अबू मोहम्मद अल-जुलानी के रूप में भी जाना जाता है, वह न्यूयॉर्क पहुंच गये हैं। देखा जाये तो यह यात्रा केवल एक राजनयिक औपचारिकता नहीं है, बल्कि सीरिया के अतीत, वर्तमान और भविष्य को जोड़ने वाला एक जटिल राजनीतिक संकेत भी है। 1982 में सऊदी अरब के रियाद में जन्मे और दमिश्क में पले-बढ़े अहमद अल-शर्रा का जीवन किसी राजनीतिक उपन्यास से कम नहीं है। कभी इराक़ में अल-कायदा के लड़ाके के रूप में लड़ने वाले, फिर पाँच वर्षों तक अमेरिकी हिरासत में रहने वाले और उसके बाद अल-नुसरा फ्रंट व हयात तहरीर अल-शाम जैसे संगठनों का नेतृत्व करने वाले शख्स का आज सीरिया का राष्ट्रपति बनना अपने आप में अप्रत्याशित है। वैसे यह भी विडंबना ही है कि जिस व्यक्ति ने कभी अमेरिका की जेल में सालों बिताए, वही अब अमेरिकी धरती से संयुक्त राष्ट्र महासभा के मंच पर पूरी दुनिया को संबोधित करने जा रहा है। यह दृश्य न केवल सीरिया के लिए, बल्कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति के लिए भी गहन प्रतीकात्मक महत्व रखता है— जहाँ दुश्मन और सहयोगी की रेखाएँ समय के साथ धुंधली पड़ जाती हैं।
हम आपको याद दिला दें कि अहमद अल-शर्रा कभी हयात तहरीर अल-शाम (HTS) जैसे उग्रवादी संगठन के शीर्ष नेता थे, जिसे पश्चिमी देशों ने आतंकवादी संगठन करार दिया था। अमेरिकी गिरफ्तारी, अल-कायदा से जुड़ाव और उसके बाद सीरिया में असद शासन के खिलाफ लड़ाई, इन सबने उनके जीवन को एक विवादास्पद किंतु निर्णायक आयाम दिया। दिसंबर 2024 में असद शासन के पतन के बाद उन्होंने सत्ता संभाली और खुद को सुधारवादी नेता के रूप में प्रस्तुत करना शुरू किया।
हम आपको बता दें कि पश्चिमी देशों, विशेषकर अमेरिका और फ्रांस, ने अल-शर्रा के साथ बातचीत शुरू कर दी है। मई 2025 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से उनकी मुलाकात और फिर प्रतिबंधों में ढील, इस बदलाव का संकेत देती है। हालांकि, आलोचकों का कहना है कि अमेरिका और उसके सहयोगियों ने आतंकवाद विरोधी नीतियों के सिद्धांतों से समझौता कर रणनीतिक हितों को प्राथमिकता दी है। इससे यह चिंता भी गहरी हुई है कि यदि किसी पूर्व उग्रवादी को अंतरराष्ट्रीय वैधता मिलती है, तो यह अन्य कट्टरपंथी संगठनों को भी गलत संदेश दे सकता है।
हम आपको बता दें कि अल-शर्रा के एजेंडे का प्रमुख बिंदु है— सीरिया का पुनर्निर्माण और प्रतिबंधों से राहत। वह लगातार यह दलील दे रहे हैं कि लंबे समय तक चले प्रतिबंध आम सीरियाई जनता को दंडित करते रहे हैं। ट्रंप द्वारा आंशिक छूट को उन्होंने “ऐतिहासिक कदम” बताया है, किंतु सीज़र एक्ट जैसे कड़े प्रावधान अभी भी बने हुए हैं।
इसके साथ ही इज़राइल के साथ संभावित वार्ता भी अंतरराष्ट्रीय रुचि का केंद्र है। दक्षिण सीरिया पर इज़राइल का कब्ज़ा और लगातार हवाई हमले एक बड़ी चुनौती रहे हैं। अल-शर्रा ने संकेत दिया है कि सुरक्षा व्यवस्था पर किसी समझौते की संभावना है, जबकि इज़राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू अभी भी इसे “भविष्य की संभावना” मानते हैं।
हम आपको यह भी बता दें कि अल-शर्रा की सबसे कठिन परीक्षा घरेलू स्तर पर है। ड्रूज़ और अलवी जैसे अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा के आरोप उनकी छवि को कमजोर कर रहे हैं। उत्तर-पूर्व में कुर्द बल और दक्षिण में ड्रूज़ समुदाय अब भी स्वायत्तता की मांग कर रहे हैं। परन्तु अल-शर्रा संघीय व्यवस्था का विरोध करते हुए “एकीकृत सीरिया” की बात करते हैं, किंतु जमीनी हकीकत कुछ और कहती है। यदि इन असंतोषों को दूर नहीं किया गया, तो गृहयुद्ध के भूत एक बार फिर सीरिया को घेर सकते हैं।
देखा जाये तो अल-शर्रा की अंतरराष्ट्रीय मान्यता केवल उनके सुधारवादी दावों की वजह से नहीं है, बल्कि यह अमेरिका-रूस प्रतिद्वंद्विता का हिस्सा भी है। रूस लंबे समय से असद शासन का प्रमुख सहयोगी रहा है और सीरिया में उसकी सैन्य मौजूदगी पश्चिम को चुनौती देती रही है। ऐसे में वॉशिंगटन के लिए अल-शर्रा के साथ संवाद और सहयोग, क्षेत्रीय शक्ति संतुलन बनाने की एक रणनीति भी है।
हम आपको बता दें कि 5 अक्टूबर को सीरिया में संसदीय चुनाव होने जा रहे हैं। यह असद शासन के पतन के बाद का पहला चुनाव है, किंतु अधिकांश सीटें इलेक्टोरल कॉलेज के जरिए भरने का प्रावधान है। करोड़ों विस्थापित नागरिकों के कारण सीधा मतदान संभव नहीं हो पा रहा। सवाल यह है कि क्या इस प्रक्रिया से वास्तविक लोकतंत्र का बीजारोपण होगा, या यह केवल सत्ता की वैधता हासिल करने का माध्यम बनेगा।
देखा जाये तो अहमद अल-शर्रा का संयुक्त राष्ट्र महासभा में भाषण और अंतरराष्ट्रीय मंच पर उनकी मौजूदगी, सीरिया के लिए एक ऐतिहासिक मोड़ है। किंतु यह स्पष्ट है कि उनका अतीत, वर्तमान को पूरी तरह ढक नहीं सकता। एक समय अल-कायदा से जुड़े रहे इस नेता को अब राष्ट्र निर्माता के रूप में देखा जाएगा या नहीं, यह आने वाले वर्षों में सिद्ध होगा। यहां सवाल यह है कि क्या सीरिया सचमुच एक सुरक्षित, स्थिर और एकीकृत देश बन पाएगा, या फिर सत्ता परिवर्तन केवल चेहरे का बदलाव साबित होगा? दुनिया की नज़रें अभी सीरिया पर टिकी हैं— जहां हर कदम इतिहास रचेगा या फिर इतिहास की गलतियों को दोहराएगा।