2013 के बाद से कश्मीर को छोड़कर देश में कोई बड़ी आतंकी घटना नहीं। यह बात खुद भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने कही। उन्होंने बताया कि कश्मीर पाकिस्तान की प्रॉक्सी लड़ाई का मोर्चा है। लेकिन बाकी भारत पूरी तरह से सुरक्षित रहा है। लेकिन इस दौरान अजीत डोभाल ने एक चौंकाने वाला खुलासा भी किया। उन्होंने बताया कि एक समय ऐसा था जब अमेरिका भारत के एक पहाड़ी राज्य पर कब्जा जमाने के बेहद करीब था। विदेशी एजेंसियां वहां अपने नेटवर्क और राजनीतिक प्रभाव के जरिए भारत की संप्रभुता को चुनौती देने की कोशिश कर रही थी। दरअसल 1970 के दशक में भारत के सामने एक ऐसा खतरा खड़ा हुआ था जिसके बारे में आम जनता को उस समय बहुत कम जानकारी थी। मसला था सिक्किम का। हिमालय की गोद में बसा यह क्षेत्र जो चीन के बेहद करीब है और भारत की उत्तरी सुरक्षा चीन की एक अहम कड़ी मानी जाती है।
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दरअसल सिक्किम पर पहले चोगियाल राजवंश का शासन चलता था। आजादी के बाद 1947 में इसे भारत का संरक्षित राज्य बनाया गया। भारत इसके रक्षा और विदेश संबंध देखता था। लेकिन आंतरिक शासन रियासत के हाथ में थी। सब कुछ अच्छा चल रहा था। तुलनात्मक रूप से शांत था। जब तक वहां की सत्ता राजा पोल्डन थंडो नामग्याल के हाथ में नहीं आई। पोल्डन नामग्याल के राजा बनने के बाद 1960 के दशक में एक नया चेहरा सामने आया होपक का। वो अमेरिकी मूल की थी और सिक्किम के महाराजा से विवाह करके वह वहां की रानी बनी। उन्होंने अमेरिकी नागरिकता तो छोड़ी लेकिन धीरे-धीरे सिक्किम में रॉयल पावर और विदेशी संपर्क दोनों बढ़ाती रही। उन्हें भारत की मौजूदगी और विशेष रूप से दिल्ली के नियंत्रण से दिक्कत है। कई विदेशी इंटरव्यू में वह खुलकर कहती नजर आई कि सिक्किम को भारत से अधिक स्वतंत्रता और वैश्विक संबंधों की जरूरत है। इसी समय भारतीय एजेंसियों को शक हुआ कि सीआईए सिक्किम को अपने प्रभाव क्षेत्र में लेने की कोशिश कर रही है। कोल्ड वॉर का दौर था। अमेरिका और सोवियत यूनियन की खुफिया लड़ाई दुनिया भर में चल रही थी।
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भारत सोवियत के करीब था और अमेरिका नहीं चाहता था कि भारत हिमालय क्षेत्र पर अपना पूर्ण नियंत्रण बनाए रखे और क्योंकि होपक के रानी बनने के बाद से चीजें बिगड़ती जा रही थी तो यहां पर खुफिया अधिकारी अजीत डोबाल को वहां भेजा गया। उनके जिम्मे यह मिशन सौंपा गया कि सिक्किम में बढ़ते अमेरिकी प्रभाव को रोका जाए। अजीत डोभावाल ने जब वहां देखा कि जनता राजशाही से काफी असंतुष्ट सिक्किम में इसके साथ ही साथ सामाजिक असमानता विकास की कमी और राजनीतिक भागीदारी की चाह बढ़ चुकी थी और यही मौका देखकर अजीत डोबाल ने स्थानीय नेतृत्व के माध्यम से लोकतांत्रिक आवाजों को मजबूती देना शुरू कर दिया जिससे धीरे-धीरे राजशाही के खिलाफ बड़ा जन आंदोलन खड़ा हुआ।
		