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46 मिनट पहले
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अरुणाचल प्रदेश के फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट, ईटानगर यानी FTII के पहले बैच के 45 स्टूडेंट्स क्लासेज अटेंड करने को तैयार नहीं है। स्टूडेंट्स की मांग है कि या तो कैंपस को ठीक किया जाए या उन्हें दूसरे कैंपस में शिफ्ट किया जाए। जब तक ऐसा नहीं होगा वो क्लासेज अटेंड न करके अपना विरोध प्रदर्शन जारी रखेंगे।

कॉलेज में जिम के फर्स्ट फ्लोर की यह है हालत।
प्रदर्शनकारी स्टूडेंट ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘मैं स्क्रीन एक्टिंग का स्टूडेंट हूं। बिहार से यहां इस कोर्स के लिए आया हूं। FTI, ईटानगर के पहले बैच का स्टूडेंट हूं।
जब मैं पहली बार कैंपस आया तो यहां की हालत देखकर हैरान रह गया। आधा-अधूरा मेन गेट और पूरा कैंपस एक कंस्ट्रक्शन साइट जैसा दिख रहा था। लड़के-लड़कियों के लिए हॉस्टल तैयार नहीं थे।
हमें गेस्ट हाउस में रहना पड़ा। बारिश के मौसम में तो स्थिति और खराब थी। नहाने क्या पीने तक के लिए साफ पानी नहीं था। समय-समय पर बिजली जाती रहती थी। कैंटीन का खाना महंगा और खराब था।’
45 स्टूडेंट्स का है पहला बैच
FTII ईटानगर ‘सत्यजीत रे फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट, कोलकाता’ का कैंपस है। यह देश का दूसरा नेशनल फिल्म इंस्टीट्यूट है। साल 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी आधारशिला रखी थी।
इसे बनाने के लिए इन्फॉर्मेशन एंड ब्रॉडकास्ट मिनिस्ट्री ने 204 करोड़ रुपए के फंड्स दिए थे और 25 महीनों में इसे तैयार करने का टारगेट रखा गया था यानी 2021 तक कैंपस पूरी तरह से तैयार होना था। इसके बाद अगस्त-सितंबर 2024 में यहां एडमिशन का प्रोसेस शुरू हो गया।
मार्च 2025 में इसके आधे-अधूरे कैंपस में 45 स्टूडेंट्स के बैच के साथ क्लासेज शुरू हुईं। पहला सेमेस्टर किसी तरह पूरा हुआ लेकिन स्टूडेंट्स ने दूसरे सेमेस्टर की क्लासेज अटेंड करने से इनकार कर दिया है।
इस इंस्टीट्यूट में 3 डिपार्टमेंट्स हैं जहां 2 साल को पोस्ट-ग्रेजुएट डिप्लोमा कराया जाता है। यहां एक्टिंग के 20, राइटिंग के 15 और डॉक्यूमेंट्री सिनेमा के 10 स्टूडेंट्स आए हुए हैं। ये सभी स्टूडेंट्स FTII JET एग्जाम क्लियर कर यहां तक पहुंचे हैं।

इंस्टीट्यूट के मेन गेट पर न तो कोई साइनबोर्ड है और न ही नाम लिखा है।
छोटी सी लाइब्रेरी में चलती रहीं क्लासेज
क्लासेज को लेकर बात करते हुए स्टूडेंट्स ने बताया, ‘फिल्म मेकिंग का कोर्स करने वाले स्टूडेंट्स की क्लासेज आमतौर पर CRT यानी क्लास रूम थिएटर में होनी चाहिए लेकिन हमारे आने तक यह तैयार ही नहीं था। इसलिए हमारी क्लासेज लाइब्रेरी में चलीं।
फिल्मों की स्क्रीनिंग के लिए लाइब्रेरी में एक छोटी सी स्क्रीन और प्रोजेक्टर का इस्तेमाल किया जाता था जिसपर ठीक से कुछ दिखता नहीं था। इसके अलावा बार-बार बिजली जाने से भी क्लासेज में रुकावट पैदा होती रही।
लाइब्रेरी में किताबों की संख्या भी बहुत कम थी। इसके अलावा कैंपस में न प्रिव्यू थिएटर तैयार है और ना ही साउंड स्टूडियो बना हुआ है। ऐसे में न स्क्रीनिंग हो पा रही हैं और ना ही एक्टिंग की क्लासेज हो पा रही हैं।’
कुछ स्टूडेंट्स का कहना है कि उन्हें पूरा मानसून का सीजन लैंडस्लाइड के डर में बिताना पड़ा। कैंपस में ढंग की सड़कें नहीं है जिसके कारण फिसलकर चोट लगने का डर लगा रहता है। आसपास कोई अस्पताल भी नहीं है।

तस्वीरों से साफ है कि अभी लंबे समय तक स्टूडेंट्स प्रिव्यू थिएटर का इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे।
कंस्ट्रक्शन साइट में पूरा किया पहला सेमेस्टर
स्टूडेंट्स ने बताया कि उन्होंने पहला सेमेस्टर आधे-अधूरे कैंपस में बिताया है। वो जब कैंपस आए तो यहां केवल एक ही बिल्डिंग थी जो आधी-अधूरी बनी थी। यहीं उनकी क्लासेज चलती थीं। एक बेसिक CRT के लिए भी उन्हें कई बार विरोध प्रदर्शन करना पड़ा।

कैंपस में बिल्डिंग्स के साथ-साथ सड़कों की हालत भी खराब है। मॉनसून में यहां कीचड़ और लैंडस्लाइड के डर के चलते स्टूडेंट्स का आना-जाना मुहाल रहता है।
राजस्थान से यहां पढ़ने आई एक स्टूडेंट ने कहा, ‘हमारा कीमती समय प्रदर्शनों और आधे-अधूरे कैंपस की भेंटभेंट चढ़ रहा है। एक नेशनल इंस्टीट्यूट में आने के बावजूद स्टूडेंट्स को बेसिक राइट्स के लिए लड़ना पड़ रहा है।’
बेंगलुरु के एक स्टूडेंट ने बताया कि कैंपस में खाने के लिए बहुत सारे ऑप्शन्स नहीं है। यहां केवल एक मेस है जहां मजबूरन सभी स्टूडेंट्स को खाना पड़ता है। यहां भी बहुत सी अनियमितताएं सामने आती रहती हैं।
सेमेस्टर के शुरुआत में कई बार कुक्स काम छोड़कर भाग गए। ऐसे में कई बार स्टूडेंट्स मेस में पहुंचते और उन्हें खाना ही नहीं मिलता। कई बार खाना सब स्टूडेंट्स को मिल भी नहीं पाता। लैंडस्लाइड की वजह से बहुत से स्टूडेंट्स को चोटें भी आईं।
गर्ल्स हॉस्टल में घुस आते हैं अजनबी
कैंपस में न तो कहीं साइनबोर्डस लगाए गए हैं और ना ही कोई मार्किंग की गई है। सिक्योरिटी गार्ड्स की भी व्यवस्था अच्छी नहीं है। ऐसे में कई ऐसे मौके आए हैं जब अनजाने में कई लोग रास्ता भटककर कैंपस के अंदर चले आते हैं।
कई लोग लड़कियों के हॉस्टल में भी घुस चुके हैं। लड़कियों ने खुद ही उनकी पहचान करके हॉस्टल के बाहर निकाला। इस तरह की सिक्योरिटी को लेकर कई बार स्टूडेंट्स शिकायत कर चुके हैं लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।

कैंपस में क्लासेज शुरू हुए करीब एक साल हो चुका है लेकिन कैंपस की हालत अब भी किसी कंस्ट्रक्शन साइट जैसी ही है।
पहले सेमेस्टर के प्रैक्टिकल्स भी ठीक से नहीं कराए गए। उन्हें इस तरह डिजाइन किया गया कि किसी इक्विपमेंट वगैरह की जरूरत ही न पड़े।
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