आज की अंतरराष्ट्रीय राजनीति में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत को वैश्विक कूटनीति का हब बना दिया है। जिस दौर में दुनिया कई संकटों से जूझ रही है— यूरोप में युद्ध, मध्यपूर्व में अस्थिरता, एशिया में शक्ति संतुलन की चुनौतियाँ, उस दौर में लगभग हर राष्ट्राध्यक्ष भारत के प्रधानमंत्री से संवाद को प्राथमिकता दे रहा है। सोशल मीडिया से लेकर प्रत्यक्ष मुलाक़ातों तक, मोदी वैश्विक नेताओं के साथ निरंतर संपर्क बनाए हुए हैं। हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ सोशल मीडिया पर हुआ संवाद केवल व्यक्तिगत सौहार्द का संकेत नहीं, बल्कि यह दर्शाता है कि वैश्विक राजनीति के प्रभावशाली चेहरे भारत से सीधे जुड़ना चाहते हैं। दूसरी ओर, मॉरीशस के प्रधानमंत्री की भारत यात्रा यह साबित करती है कि हिंद महासागर क्षेत्र में भारत केवल पड़ोसी ही नहीं, बल्कि विश्वसनीय भागीदार भी है।
इटली, कतर और ईरान जैसे देशों के साथ हालिया बातचीत ने भारत की भूमिका को और स्पष्ट कर दिया है। कोई फोन पर शांति और स्थिरता पर चर्चा करता है, तो कोई भारत-यूरोप मुक्त व्यापार समझौते की गति बढ़ाने पर जोर देता है। कोई आतंकवाद विरोधी सहयोग चाहता है, तो कोई भारत की तकनीकी और आर्थिक प्रगति से जुड़ने को उत्सुक है। यह परिदृश्य बताता है कि भारत अब मांग करने वाला राष्ट्र नहीं, बल्कि आमंत्रित करने वाला राष्ट्र बन चुका है।
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मोदी का वैश्विक कूटनीति में यह सक्रिय और संतुलित दृष्टिकोण भारत को “मध्यस्थ” और “विश्वसनीय आवाज़” दोनों बना रहा है। भारत न केवल अपने हितों की रक्षा कर रहा है, बल्कि वैश्विक चुनौतियों— चाहे वह जलवायु परिवर्तन हो, आतंकवाद हो या आर्थिक असमानता, पर ठोस पहल भी कर रहा है। आज हर देश भारत से हाथ मिलाना चाहता है, क्योंकि मोदी ने भारत को महज़ क्षेत्रीय शक्ति नहीं, बल्कि वैश्विक राजनीति के धुरी के रूप में स्थापित कर दिया है। यह स्थिति न केवल भारत की बढ़ती ताक़त का प्रतीक है, बल्कि बदलते विश्व-क्रम में हमारे देश की निर्णायक भूमिका का भी प्रमाण है। खासतौर पर इस सप्ताह की कूटनीतिक हलचलों पर नजर डालें तो यह साफ होता है कि बदलते विश्व परिदृश्य में भारत अब केवल एक और देश नहीं, बल्कि सभी देशों के लिए एक अनिवार्य साझेदार बन गया है।
इटली से संबंध
10 सितम्बर को प्रधानमंत्री मोदी और इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी के बीच हुई वार्ता ने यह स्पष्ट किया कि भारत-इटली संबंध अब सामरिक साझेदारी के नए दौर में हैं। निवेश, रक्षा, विज्ञान, शिक्षा और आतंकवाद-निरोध जैसे क्षेत्रों में सहयोग केवल द्विपक्षीय रिश्तों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे यूरोप को यह संदेश देता है कि भारत-ईयू संबंध भविष्य की वैश्विक व्यवस्था में निर्णायक होंगे। देखा जाये तो भारत-ईयू मुक्त व्यापार समझौते को लेकर इटली का उत्साह और India-Middle East-Europe Economic Corridor (IMEEEC) में सहयोग इस बात की पुष्टि करता है।
कतर से वार्ता
कतर के अमीर से प्रधानमंत्री की बातचीत न केवल क्षेत्रीय संकट पर भारत की सक्रियता को दर्शाती है, बल्कि यह भी स्पष्ट करती है कि भारत अब मध्य पूर्व की शांति प्रक्रिया में एक विश्वसनीय खिलाड़ी है। दोहा हमलों की निंदा और गाज़ा संकट में कतर की मध्यस्थता को समर्थन देना भारत की उस नीति का हिस्सा है जिसमें वह आतंकवाद का स्पष्ट विरोध करते हुए संवाद और कूटनीति से समाधान खोजने पर जोर देता है। इससे यह संदेश गया कि भारत सिर्फ ऊर्जा-आयातक नहीं, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता का हितैषी साझेदार है।
पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन
मलेशिया में हुई पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन की तैयारी बैठक में भारत ने न केवल रचनात्मक सहयोग का आश्वासन दिया बल्कि Mission LiFE और नालंदा विश्वविद्यालय में होने वाले उच्च शिक्षा सम्मेलन जैसे आयामों को सामने रखकर यह दिखाया कि भारत एशिया की साझा चुनौतियों (ऊर्जा, पर्यावरण, शिक्षा) का समाधान प्रस्तुत करने में अग्रणी है।
भारत-ईयू आतंकवाद संवाद
ब्रुसेल्स में हुई 15वीं भारत-यूरोपीय संघ आतंकवाद विरोधी वार्ता इस बात का प्रमाण है कि आतंकवाद को लेकर भारत का अनुभव और उसका ठोस दृष्टिकोण वैश्विक स्तर पर मान्यता पा रहा है। पहलगाम हमले पर यूरोप का भारत के साथ खड़ा होना और आतंकवाद की वित्तीय धारा रोकने से लेकर तकनीकी चुनौतियों तक पर मिलकर काम करने का संकल्प यह दिखाता है कि भारत अब सुरक्षा विमर्श का केंद्र है।
ईरान के साथ बातचीत
तेहरान में हुई भारत-ईरान राजनीतिक परामर्श यह दर्शाते हैं कि अंतरराष्ट्रीय परिवहन गलियारे (INSTC) और connectivity परियोजनाओं में भारत अपरिहार्य है। पश्चिम एशिया से मध्य एशिया और यूरोप तक के लिए भारत न केवल एक व्यापारिक मार्ग बल्कि एक सामरिक सेतु भी बन रहा है।
अमेरिका से संबंध
सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच हालिया संवाद ने यह संदेश दिया कि भारत-अमेरिका साझेदारी केवल औपचारिक कूटनीति तक सीमित नहीं है। यह संवाद न केवल दोनों देशों के नेतृत्व की व्यक्तिगत समीपता को दर्शाता है, बल्कि यह भी इंगित करता है कि वैश्विक राजनीति में भारत की भूमिका अमेरिकी विमर्श के केंद्र में है, चाहे नेतृत्व किसी भी पार्टी के हाथ में हो।
भारत-मॉरीशस संबंध
मॉरीशस के प्रधानमंत्री की भारत यात्रा ने हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की रणनीतिक गहराई को उजागर किया। मॉरीशस लंबे समय से भारत का सांस्कृतिक और राजनीतिक साझेदार रहा है, पर हालिया वार्ता ने समुद्री सुरक्षा, डिजिटल सहयोग और नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्रों में नई संभावनाओं को जन्म दिया। इससे यह संकेत मिला कि हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की भूमिका एक नेट सिक्योरिटी प्रोवाइडर और विकास भागीदार, दोनों रूपों में स्वीकार की जा रही है।
जहां तक यह सवाल है कि क्यों भारत अब वैश्विक गतिविधियों का केंद्र है? तो इसका जवाब यह है कि अमेरिका और यूरोप से लेकर रूस, ईरान और खाड़ी देशों तक, भारत ने सभी से संवाद बनाए रखा है। इसके अलावा, आतंकवाद और क्षेत्रीय संघर्षों पर भारत अब “दर्शक” नहीं, बल्कि “भागीदार” है। साथ ही निवेश, व्यापार और ऊर्जा गलियारों के जरिये भारत वैश्विक सप्लाई चेन का अभिन्न हिस्सा बन रहा है। इसके अलावा, नालंदा विश्वविद्यालय, Mission LiFE और वैश्विक शांति की वकालत से भारत अपनी सॉफ्ट पावर को भी मजबूत कर रहा है।
बहरहाल, प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीति ने भारत को हर महाद्वीप में महत्वपूर्ण बना दिया है। यूरोप से लेकर अमेरिका तक, मध्य पूर्व से हिंद महासागर तक– भारत अब संतुलनकारी शक्ति, सुरक्षा भागीदार और आर्थिक इंजन, तीनों रूपों में सक्रिय है। यह वही भारत है जिसकी आवाज़ न केवल वैश्विक सम्मेलनों में बल्कि सोशल मीडिया संवाद और समुद्री साझेदारियों में भी गूंज रही है। आज का भारत वास्तव में वैश्विक गतिविधियों का केंद्र है– और इसका श्रेय प्रधानमंत्री मोदी की निर्णायक और संतुलनकारी विदेश नीति को जाता है।
-नीरज कुमार दुबे
(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
