भारतीय सेना ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया है कि अब से केवल जवान ही नहीं, बल्कि ब्रिगेडियर, मेजर जनरल और लेफ्टिनेंट जनरल जैसे शीर्ष अधिकारी भी हर वर्ष दो बार शारीरिक फिटनेस परीक्षण देंगे। यह संयुक्त शारीरिक परीक्षण (Combined Physical Test- CPT) अगले वर्ष अप्रैल से लागू होगा और इसका उद्देश्य है “फिटनेस को रैंक से ऊपर रखकर युद्धक तैयारी को नया आयाम देना।”
हम आपको बता दें कि अब तक सेना में दो अलग-अलग मानक थे। युद्धक शारीरिक दक्षता परीक्षा (BPET), 45 वर्ष तक के सैनिकों और अधिकारियों पर लागू थी। तथा शारीरिक दक्षता परीक्षा (PPT) 50 वर्ष तक के अधिकारियों पर लागू थी। अब इन दोनों को मिलाकर एक ही प्रणाली बनाई गई है— CPT (Combined Physical Test)। इसमें उम्र की ऊपरी सीमा 60 वर्ष कर दी गई है। इसका अर्थ है कि अब शीर्ष तीन-सितारा अधिकारी तक इस दायरे में आएंगे।
Combined Physical Test में क्या-क्या शामिल है, इस पर गौर करें तो आपको बता दें कि 3.2 किलोमीटर दौड़ (या तेज चाल) 4.5 किलो वजन के साथ, पुश-अप्स, सिट-अप्स और रस्सी चढ़ना। हर प्रतिभागी को न्यूनतम 6 ग्रेड प्राप्त करना अनिवार्य होगा, अन्यथा उसकी पदोन्नति पर प्रभाव पड़ सकता है। इसके अलावा, 55 वर्ष तक अधिकारी “निगरानी में” यह परीक्षण देंगे और उसके बाद 60 वर्ष तक “स्व-मूल्यांकन” के आधार पर फिटनेस की पुष्टि करेंगे।
देखा जाये तो सेना का यह फैसला केवल शारीरिक कसौटी का विस्तार नहीं, बल्कि नेतृत्व दर्शन में बदलाव का संकेत है। आधुनिक युद्ध का स्वरूप भले तकनीक-प्रधान हो गया हो, परंतु “मानवीय तत्व” उसकी आत्मा बना हुआ है। एक वरिष्ठ अधिकारी जो स्वयं मैदान में शारीरिक रूप से सक्षम है, वही अपने जवानों में आत्मविश्वास और अनुशासन की भावना जगा सकता है। यह निर्णय सेना के उस सिद्धांत को पुनः पुष्ट करता है कि “नेतृत्व का अर्थ आदेश देना नहीं, बल्कि उदाहरण बनकर नेतृत्व करना है।” सेना के दस्तावेज़ में भी यही भाव है कि कमांडर को “हर समय अग्रिम मोर्चे पर टीम का नेतृत्व करने में सक्षम होना चाहिए।” अर्थात, यह कदम सेना के नेतृत्व में शारीरिक विश्वसनीयता और नैतिक अधिकार दोनों को पुनर्स्थापित करता है।
देखा जाये तो आज के युद्धक्षेत्र का स्वरूप पहले जैसा नहीं रहा। यह अब केवल “शक्ति के टकराव” का नहीं, बल्कि “सहनशक्ति और तत्परता” का युद्ध है। हाइब्रिड वॉरफेयर, मल्टी-डोमेन ऑपरेशंस, काउंटर-इंसर्जेंसी और सीमित संसाधनों में त्वरित प्रतिक्रिया, इन सबके लिए सैनिक का शारीरिक और मानसिक रूप से उच्चतम स्तर पर रहना आवश्यक है। डिजिटलाइजेशन और ड्रोन-आधारित युद्धक प्रणालियों के बावजूद, ‘मानव शरीर’ ही हर सैन्य अभियान का केंद्रबिंदु है। इसलिए सेना का यह फैसला केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि रणनीतिक दृष्टि से आवश्यक कदम है।
सेना दस्तावेज़ के शब्दों पर गौर करें तो इसमें कहा गया है, “ताकत, सहनशक्ति और चपलता युद्ध की तैयारी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।” “चुस्त-दुरुस्त सैनिक अपनी यूनिट के लिए अधिक सक्षम, विश्वसनीय और प्रभावी भूमिका में होता है।” यह बात केवल जवान पर नहीं, बल्कि शीर्ष नेतृत्व पर भी समान रूप से लागू होती है।
सेना ने दो अलग-अलग प्रणालियों को समाप्त कर एकीकृत CPT लागू किया है तो इसका अर्थ है संचालनात्मक एकरूपता (Operational Simplification)। अब रैंक, आयु या लिंग के अनुसार अलग-अलग मानक नहीं होंगे, बल्कि एक समन्वित तालिका होगी, जो सभी को समान मापदंडों पर परखेगी। इससे दो प्रमुख लाभ होंगे। पहला- अब फिटनेस का मूल्यांकन स्पष्ट, तुलनीय और निष्पक्ष होगा। दूसरा- अलग-अलग परीक्षणों की जगह एकीकृत प्रणाली अपनाने से प्रशासनिक दक्षता बढ़ेगी। यह सुधार केवल “शारीरिक फिटनेस” नहीं बल्कि “संस्थागत फिटनेस” का भी प्रतीक है, यानी एक ऐसी सेना जो खुद को बदलते समय के अनुसार ढालने की क्षमता रखती है।
हम आपको यह भी बता दें कि भारतीय सेना ने हाल के वर्षों में कई सुधार आरंभ किए हैं। अग्निपथ योजना के ज़रिए जवानों की औसत आयु घटाकर युवा प्रोफ़ाइल बनाई गई, थियेटर कमांड संरचना की दिशा में कदम बढ़ाए गए और अब यह फिटनेस का आधुनिकीकरण उसी प्रक्रिया का अगला चरण है। इससे यह संदेश जाता है कि भारतीय सेना न केवल हथियारों से, बल्कि मानवीय गुणवत्ता और आत्म-अनुशासन से भी युद्धक क्षमता बढ़ा रही है। यह कदम सैन्य नैतिकता में भी एक नए युग की शुरुआत है— जहाँ सीनियरिटी से ज़्यादा फिटनेस और पद से ज़्यादा उदाहरण मायने रखेगा।
सेना का यह निर्णय एक संदेश और संकल्प दोनों है। संदेश यह कि हर रैंक पर सैनिक वही है जो मैदान में सक्रिय रह सके और संकल्प यह कि सेना केवल युद्ध नहीं लड़ती, वह राष्ट्र को आत्मबल और अनुशासन की प्रेरणा भी देती है। देखा जाये तो संयुक्त शारीरिक परीक्षण (CPT) भारतीय सेना को नयी पीढ़ी की फोर्स के रूप में गढ़ने का प्रयास है- जहाँ फिटनेस, तैयारी और नेतृत्व एक-दूसरे के पूरक हों। कुल मिलाकर देखें तो “फिटनेस अब केवल सैनिक की शर्त नहीं, बल्कि नेतृत्व की पहचान है।”
-नीरज कुमार दुबे