अमेरिका और चीन के बीच चल रही “चिप वॉर” अब सिर्फ दो महाशक्तियों का द्वंद्व नहीं रही, बल्कि वैश्विक तकनीकी शक्ति संतुलन का केंद्रीय मुद्दा बन चुकी है। ताज़ा घटनाक्रम में अमेरिका, एनविडिया और एएमडी जैसी कंपनियों के चीन को बेचे जाने वाले एआई चिप्स की बिक्री से 15% हिस्सेदारी लेने की तैयारी कर रहा है। यह कदम बताता है कि अब सरकारें भी सीधे हाई-टेक कारोबार में ‘स्टेकहोल्डर’ बनने लगी हैं। इसके पीछे व्यापारिक प्रतिस्पर्धा के साथ-साथ रणनीतिक भू-राजनीतिक समीकरण भी छिपे हैं। मसलन ट्रम्प प्रशासन की चिप बिक्री पर पाबंदी, चीन का दुर्लभ धातुओं के निर्यात पर प्रतिबंध और फिर टैरिफ युद्ध में अस्थायी विराम। हम आपको याद दिला दें कि ट्रम्प प्रशासन ने अप्रैल में बीजिंग के साथ व्यापारिक टकराव के चलते चीन को चिप की बिक्री पर रोक लगाई थी। लेकिन चीन द्वारा अमेरिका को दुर्लभ धातुओं (Rare Earths) के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के बाद ट्रम्प को यह पाबंदी हटानी पड़ी थी।
इस पूरी घटना से पहला बड़ा सबक यह निकलता है कि तकनीकी क्षेत्र की खींचतान अब स्थायी हो चुकी है। चाहे वह अमेरिका द्वारा चीन को चिप बेचना हो या चीन का भारत की तकनीकी विनिर्माण क्षमता को कमज़ोर करने की कोशिश (जैसे हाल में फॉक्सकॉन के भारत स्थित संयंत्रों से चीनी इंजीनियरों की वापसी), यह एक ऐसा रणनीतिक क्षेत्र है जिसे हर देश अपने हित में इस्तेमाल या हथियार बनाने की कोशिश करेगा।
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इस शक्ति-संघर्ष में भारत की स्थिति पर गौर करने से पहले हमें यह देखना होगा कि जहां चीन अपनी विनिर्माण क्षमता और ताइवान अपनी सेमीकंडक्टर श्रेष्ठता के कारण अमेरिकी टैरिफ से बच निकलते हैं, वहीं भारत को ट्रम्प जैसे नेताओं की नज़र में अब भी कोई रणनीतिक “बार्गेनिंग चिप” नहीं माना जाता। इसका सीधा संदेश है- अगर भारत को वैश्विक तकनीकी टेबल पर निर्णायक सीट चाहिए, तो उसे सेमीकंडक्टर और एआई में ठोस बढ़त लेनी होगी।
प्रधानमंत्री मोदी इस बात को बहुत पहले से समझ रहे थे इसलिए उनकी सरकार ने दिसंबर 2021 में शुरू किए गए भारत सेमीकंडक्टर मिशन को अब एक आक्रामक औद्योगिक अभियान में बदल दिया है। 10 अरब डॉलर से अधिक का प्रोत्साहन पैकेज और राज्यों में फैले सेमीकंडक्टर पार्क इस दिशा में पहला कदम थे। ताज़ा फैसले के तहत, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने चार नई परियोजनाओं को मंज़ूरी दी है। इनमें ओडिशा में सिकसेम की देश की पहली वाणिज्यिक कंपाउंड फैब्रिकेशन इकाई, 3डी ग्लास सॉल्यूशंस की उन्नत पैकेजिंग सुविधा, आंध्र प्रदेश में एएसआईपी की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट और पंजाब में सीडीआईएल का विस्तार शामिल है। इन परियोजनाओं में लगभग 4,600 करोड़ रुपये का निवेश होगा और 2,000 से अधिक कुशल पेशेवरों को प्रत्यक्ष रोज़गार मिलेगा, साथ ही अनेक अप्रत्यक्ष अवसर भी सृजित होंगे। इनसे भारत को सिलिकॉन कार्बाइड आधारित कंपाउंड चिप्स, अत्याधुनिक पैकेजिंग तकनीक और उच्च-प्रदर्शन इलेक्ट्रॉनिक घटकों के उत्पादन में ऐसी क्षमता मिलेगी, जो अब तक ताइवान, दक्षिण कोरिया या चीन के पास ही केंद्रित थी।
देखा जाये तो दुनिया का तकनीकी परिदृश्य बदल रहा है। अमेरिका और यूरोप, चीन-निर्भर आपूर्ति श्रृंखला से बाहर निकलना चाहते हैं। भारत एक स्थिर लोकतंत्र, विशाल बाज़ार और कुशल इंजीनियरिंग प्रतिभा के चलते स्वाभाविक विकल्प है। हमारी लागत-प्रतिस्पर्धा और डिज़ाइन विशेषज्ञता, अगर घरेलू विनिर्माण क्षमता से जुड़ जाए, तो भारत “टेक सप्लाई चेन” में एक अनिवार्य कड़ी बन सकता है। एक और बात काबिलेगौर है कि एआई (Artificial Intelligence) के आगमन के साथ भारत की पारंपरिक ताक़त यानी सॉफ्टवेयर और कोडिंग अब उतनी आकर्षक नहीं रही। इसलिए, भारत को सेमीकंडक्टर निर्माण, डिज़ाइन और एआई जैसी मूलभूत तकनीकों में महारत हासिल करने के अपने संकल्प में किसी भी हालत में ढील नहीं देनी चाहिए। इसके अलावा, एआई तकनीक को लेकर एलन मस्क और ओपनएआई के प्रमुख सैम ऑल्टमैन के बीच ऐप्पल ऐप स्टोर में लिस्टिंग को लेकर हुआ विवाद दिखाता है कि कंपनियां इस क्षेत्र में कितनी आक्रामक प्रतिस्पर्धा कर रही हैं। भारत को इसमें पीछे नहीं रहना चाहिए।
इसके अलावा, अमेरिका–चीन चिप वॉर ने साफ कर दिया है कि तकनीक अब “व्यापार” से कहीं ज़्यादा “रणनीतिक हथियार” बन चुकी है। भारत के पास इस हथियार को गढ़ने का मौका है— और मोदी सरकार की मौजूदा नीति उसकी मजबूत शुरुआत है। अगर आने वाले पाँच–सात वर्षों में भारत स्थानीय R&D, डिज़ाइन-टू-मैन्युफैक्चरिंग चेन और ग्लोबल साझेदारियों में निर्णायक निवेश करता है, तो अगली बार जब दुनिया तकनीकी संकट में होगी, समाधान के लिए उसकी नज़र ताइवान या चीन पर नहीं बल्कि भारत पर होगी।
बहरहाल, दुनिया के तकनीकी मानचित्र पर सेमीकंडक्टर आज ‘तेल’ की तरह है— हर आधुनिक उत्पाद, स्मार्टफोन से लेकर मिसाइल तक, इसके बिना अधूरा है। कोविड महामारी और अमेरिका–चीन तकनीकी युद्ध ने यह स्पष्ट कर दिया है कि चिप्स की वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला कितनी नाज़ुक और रणनीतिक रूप से संवेदनशील है। इस पृष्ठभूमि में मोदी सरकार की सेमीकंडक्टर नीति भारत को केवल एक उपभोक्ता नहीं, बल्कि एक निर्णायक आपूर्तिकर्ता के रूप में स्थापित करने की दिशा में बड़ा कदम है।
-नीरज कुमार दुबे
(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)