भारत की विदेश नीति ने इस सप्ताह पश्चिम एशिया की दिशा में एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक कदम बढ़ाया। 3 नवंबर को भारत–बहरीन उच्च संयुक्त आयोग (High Joint Commission) की पाँचवीं बैठक नई दिल्ली में हुई, जिसकी सह-अध्यक्षता विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर और बहरीन के विदेश मंत्री डॉ. अब्दुल लतीफ़ बिन राशिद अलजायानी ने की। इसके तुरंत अगले दिन यानि 4 नवंबर को इज़राइल के विदेश मंत्री भारत पहुंचे। यह उनकी भारत यात्रा का पहला अवसर था।
दोनों बैठकों के केंद्र में भारत की संतुलित और बहु-आयामी पश्चिम एशिया नीति स्पष्ट रूप से दिखाई दी। जयशंकर ने दोनों अवसरों पर अपने वक्तव्यों में यह रेखांकित किया कि भारत अब केवल ऊर्जा या व्यापार साझेदार नहीं, बल्कि एक रणनीतिक सहयोगी और स्थिरता के सहभागी के रूप में क्षेत्र में सक्रिय भूमिका निभा रहा है।
भारत–बहरीन संबंध को देखें तो दोनों देशों के रिश्ते सदियों पुराने हैं। अरब सागर के जलमार्गों से आरंभ हुआ यह रिश्ता अब रक्षा, अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य, संस्कृति और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों तक फैल चुका है।
5वीं उच्च संयुक्त आयोग बैठक में दोनों देशों ने रक्षा, सुरक्षा, अंतरिक्ष, फिनटेक, स्वास्थ्य और व्यापार के क्षेत्रों में नए आयाम जोड़े। जयशंकर ने अपने भाषण में बहरीन को GCC (Gulf Cooperation Council) का अध्यक्ष बनने पर बधाई दी और भारत–GCC साझेदारी को आगे बढ़ाने की इच्छा जताई। उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि भारत और बहरीन “साझा क्षेत्रीय स्थिरता और शांति” के लक्ष्य में एकमत हैं।
हम आपको बता दें कि दोनों देशों के बीच $1.64 बिलियन का द्विपक्षीय व्यापार दर्ज किया गया है और अब एक Comprehensive Economic Partnership Agreement (CEPA) तथा Bilateral Investment Treaty (BIT) की दिशा में भी काम हो रहा है। साथ ही, दोनों देशों ने Double Taxation Avoidance Agreement (DTAA) की पहल की, जिससे निवेश और व्यापार को नई गति मिलेगी। महत्वपूर्ण बात यह रही कि भारत ने बहरीन में तीन नौसैनिक जहाज़ों की तैनाती (सितंबर 2025) का उल्लेख करते हुए क्षेत्रीय समुद्री सुरक्षा को सुदृढ़ करने की प्रतिबद्धता दोहराई। यह संदेश केवल खाड़ी क्षेत्र को नहीं, बल्कि हिंद महासागर से सटे भू-राजनीतिक परिदृश्य को भी दिया गया।
सांस्कृतिक और जन-जन के रिश्तों के स्तर पर, जयशंकर ने भारतीय प्रवासियों के कल्याण के लिए बहरीन सरकार का आभार जताया। भारत ने बहरीनी नागरिकों के लिए ई-वीज़ा प्रणाली लागू की, जिससे पर्यटन और व्यापारिक यात्राओं को बढ़ावा मिलेगा। भारत ने इस बैठक में गाज़ा शांति योजना (Gaza Peace Plan) का समर्थन करते हुए यह भी स्पष्ट किया कि पश्चिम एशिया में स्थायी समाधान संवाद और परस्पर विश्वास से ही संभव है।
वहीं दूसरी ओर भारत–इज़राइल संबंध साझेदारी से रणनीतिक एकजुटता तक बढ़ते दिख रहे हैं। इज़राइल के विदेश मंत्री की भारत यात्रा को जयशंकर ने “विश्वास और विश्वसनीयता की साझेदारी” करार दिया। उन्होंने यह भी कहा कि “भारत और इज़राइल की साझेदारी में ‘रणनीतिक’ शब्द केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि वास्तविकता है।” दोनों देशों ने आतंकवाद को साझा चुनौती बताते हुए “ज़ीरो टॉलरेंस पॉलिसी” को वैश्विक स्तर पर अपनाने का आह्वान किया। भारत ने इज़राइल में हाल की आतंकवादी घटनाओं और गाज़ा संकट पर चिंता जताई और गाज़ा शांति योजना के समर्थन में खड़ा होने का संकेत दिया। देखा जाये तो यह एक संतुलित और रचनात्मक रुख है, जो भारत की “मानवता और सुरक्षा” आधारित विदेश नीति को दर्शाता है।
साथ ही जयशंकर ने दोनों देशों के बीच हाल ही में संपन्न Bilateral Investment Agreement को “मील का पत्थर” बताया। कृषि, नवाचार, साइबर सुरक्षा, सेमीकंडक्टर और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्रों में सहयोग को नई दिशा देने की बात कही गई। भारत ने यह भी प्रस्ताव रखा कि फरवरी 2026 में होने वाले AI Impact Summit में इज़राइल प्रमुख साझेदार के रूप में भाग ले। यह भारत की तकनीकी-राजनयिक सोच का उदाहरण है, जहाँ विदेश नीति अब टेक्नोलॉजी और नवाचार के माध्यम से भी गठजोड़ गहरी कर रही है। साथ ही, इज़राइल में भारतीय श्रमिकों के बढ़ते योगदान और उनके मुद्दों पर चर्चा करते हुए जयशंकर ने इस सहयोग को मानव-केंद्रित रणनीतिक साझेदारी बताया।
जयशंकर के संबोधन की बड़ी बातों पर गौर करें तो दोनों बैठकों में प्रस्तुत उनकी दृष्टि भारत की नई पश्चिम एशिया नीति को परिभाषित करती है। यह एक ऐसी नीति है जो न तो किसी एक गुट के पक्ष में है, न विरोध में; बल्कि यह सहयोग, स्थिरता और बहु-स्तरीय साझेदारी पर आधारित है। देखा जाये तो भारत अब केवल ऊर्जा सुरक्षा के दृष्टिकोण से खाड़ी को नहीं देख रहा, बल्कि उसे सामरिक और भू-आर्थिक सहयोग के केंद्र के रूप में स्थापित कर रहा है। इज़राइल और बहरीन, दो ऐसे देश हैं जिनके बीच अब्राहम समझौते (Abraham Accords) के बाद नए संबंध बने हैं और भारत दोनों के साथ समानांतर संवाद रखकर संतुलनकारी शक्ति (balancing power) की भूमिका निभा रहा है।
इसके अलावा, जयशंकर के भाषणों में बार-बार “Gaza Peace Plan” का उल्लेख यह दर्शाता है कि भारत अब मध्यस्थता और नैतिक कूटनीति की भूमिका निभाने की दिशा में बढ़ रहा है। भारत, एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में आतंकवाद के खिलाफ कठोर रुख के साथ-साथ मानवीय दृष्टिकोण से भी अपनी स्थिति स्पष्ट कर रहा है।
बहरीन और इजराइल के विदेश मंत्री की भारत यात्रा का सामरिक महत्व भी बहुआयामी है। बहरीन और इज़राइल दोनों भारत के टेक्नोलॉजी, फिनटेक और रक्षा क्षेत्र के साझेदार बन रहे हैं। साथ ही बहरीन में भारतीय नौसैनिक उपस्थिति हिंद महासागर और अरब सागर में भारत की निगरानी क्षमता को सुदृढ़ करती है। वहीं इज़राइल के साथ रक्षा और साइबर क्षेत्र में गहराते रिश्ते तथा बहरीन के साथ खाड़ी में कूटनीतिक उपस्थिति, भारत को क्षेत्र में संतुलनकारी शक्ति बनाते हैं। इसके अलावा, गाज़ा शांति योजना और आतंकवाद विरोध पर भारत की स्पष्ट स्थिति यह दर्शाती है कि भारत अब केवल “प्रतिबिंबक” नहीं, बल्कि “निर्धारक” भूमिका निभाना चाहता है।
बहरहाल, बहरीन और इज़राइल के विदेश मंत्रियों की यह यात्रा केवल औपचारिक कूटनीति नहीं थी; यह भारत की उभरती वैश्विक भूमिका का प्रतीक है। जयशंकर के वक्तव्य इस बात की पुष्टि करते हैं कि भारत अब पश्चिम एशिया में केवल एक “साझेदार” नहीं, बल्कि स्थिरता का विश्वसनीय स्तंभ बनकर उभर रहा है। भारत की विदेश नीति का यह नया अध्याय— “Strategic Autonomy with Strategic Engagement”, न केवल भारत के आर्थिक हितों की रक्षा करता है, बल्कि वैश्विक दक्षिण की आवाज़ के रूप में उसकी भूमिका को भी सशक्त करता है।