अमेरिका ने पाकिस्तान को अत्याधुनिक एआईएम-120 एडवांस्ड मीडियम रेंज एयर-टू-एयर मिसाइल (AMRAAM) देने की मंज़ूरी दी है। अमेरिकी डिपार्टमेंट ऑफ़ वॉर (DoW) की हालिया अधिसूचना के अनुसार, पाकिस्तान को यह मिसाइलें विदेशी सैन्य बिक्री (Foreign Military Sales) कार्यक्रम के तहत मिलेंगी। हम आपको बता दें कि इन मिसाइलों का इस्तेमाल पाकिस्तान वायुसेना (PAF) के F-16 फाल्कन लड़ाकू विमानों पर किया जाता है। यह वही मिसाइल है जिसका उपयोग पाकिस्तान ने फरवरी 2019 में बालाकोट हवाई हमले के बाद हुई हवाई झड़प में किया था। उस समय भारत ने जैश-ए-मोहम्मद के सबसे बड़े आतंकी प्रशिक्षण शिविर पर लक्षित कार्रवाई की थी, जिसमें दर्जनों आतंकवादी और उनके कमांडर मारे गए थे।
रिपोर्टों के अनुसार, मिसाइल निर्माता कंपनी रेथियॉन को लगभग 41.6 मिलियन डॉलर की संशोधित अनुबंध राशि (Contract Modification) मिली है, जिसके अंतर्गत C8 और D3 वैरिएंट्स का निर्माण किया जाएगा। यह अनुबंध कुल 2.51 बिलियन डॉलर से अधिक का है, जिसमें पाकिस्तान सहित कई देश शामिल हैं।
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हालाँकि यह स्पष्ट नहीं है कि पाकिस्तान को कितनी नई मिसाइलें मिलेंगी, परंतु यह संकेत अवश्य है कि पाकिस्तान अपने F-16 बेड़े को अपग्रेड करने की योजना बना रहा है। हम आपको बता दें कि पाक वायुसेना वर्तमान में AIM-120C5 संस्करण का उपयोग करती है, जिसे उसने 2010 में 500 यूनिट्स के रूप में खरीदा था। अब C8 वैरिएंट मिलने पर उसकी वायु-युद्ध क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि होगी। इस सौदे का समय भी राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि पाकिस्तान और अमेरिका के संबंधों में फिर से निकटता देखी जा रही है।
देखा जाये तो अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को एआईएम-120 मिसाइलें दिए जाने का निर्णय दक्षिण एशिया के सामरिक संतुलन को नए सिरे से परिभाषित कर सकता है। यह कदम केवल रक्षा आपूर्ति नहीं है; यह एक रणनीतिक संकेत है कि वाशिंगटन अब इस क्षेत्र में फिर से प्रभाव पुनर्स्थापित करने की कोशिश कर रहा है। इसके सामरिक प्रभावों का आकलन करें तो आपको बता दें कि एआईएम-120 (AMRAAM) मिसाइल बियोंड विजुअल रेंज (BVR) क्षमता वाली हथियार प्रणाली है, जो लक्ष्य को 100–160 किलोमीटर की दूरी से मार गिराने में सक्षम है। इसका एक्टिव रडार सीकर लक्ष्य का पीछा अंतिम क्षण तक करता है, जिससे पायलट को “फायर एंड फॉरगेट” (Fire and Forget) सुविधा मिलती है।
यदि पाकिस्तान को C8 वैरिएंट मिलता है, तो यह उसके F-16 ब्लॉक 52 विमानों को लगभग 150 किमी की रेंज प्रदान करेगा, जो वर्तमान में भारत के राफेल या मिराज-2000 के खिलाफ एक चुनौतीपूर्ण क्षमता है। यह मिसाइल तेज़ गतिशीलता, इलेक्ट्रॉनिक काउंटरमेजर्स के प्रति प्रतिरोध, और नेटवर्क-सेंटरड टारगेटिंग सिस्टम जैसी विशेषताओं से लैस है। यह स्थिति भारत के लिए सामरिक रूप से एयर सुपरियोरिटी (Air Superiority) बनाए रखने की चुनौती बढ़ा सकती है।
हम आपको यह भी बता दें कि भारत के पास पहले से ही कई एयर-टू-एयर मिसाइलें हैं जो AMRAAM का मुकाबला कर सकती हैं या उससे भी बेहतर प्रदर्शन कर सकती हैं। इन मिसाइलों पर नजर डालें तो आपको बता दें कि सबसे पहला नाम मेटेओर मिसाइल का आता है। राफेल विमानों पर लगी यह यूरोपीय मिसाइल वर्तमान में दुनिया की सबसे उन्नत BVR मिसाइलों में से एक है। इसकी रेंज 150–200 किमी तक मानी जाती है और इसका रैमजेट इंजन लक्ष्य तक निरंतर गति बनाए रखता है। AIM-120C8 के मुकाबले Meteor कहीं अधिक सक्षम है।
इसके अलावा, अस्ट्रा (Astra) मिसाइल भी बहुत बेहतर है। भारत में विकसित स्वदेशी BVR मिसाइल जिसकी रेंज 110 किमी तक है। वर्तमान में Astra Mk-1 को सुखोई-30MKI और तेजस पर लगाया जा रहा है। Astra Mk-2 (रेंज 160 किमी) और Mk-3 (रेंज 300 किमी) विकासाधीन हैं, जो भविष्य में AIM-120 को मात दे सकती हैं। साथ ही, IRIS-T और MICA जैसी छोटी दूरी की मिसाइलें भी राफेल और मिराज-2000 पर भारतीय विमानों को मल्टी-लेयर एयर डिफेंस प्रदान करती हैं। इस प्रकार, तकनीकी दृष्टि से भारत के पास ऐसी मिसाइलें हैं जो पाकिस्तान के F-16 और AMRAAM संयोजन से श्रेष्ठ हैं। लेकिन रणनीतिक परिप्रेक्ष्य में देखें तो पाकिस्तान को अमेरिका से मिलने वाली मदद भारत को अपने वायु रक्षा नेटवर्क और इंटरसेप्शन प्रोटोकॉल को और मजबूत करने का संकेत देती है।
साथ ही यह कदम अमेरिका की डुअल डिप्लोमेसी को भी उजागर करता है। एक ओर, वह भारत को “क्वाड” और इंडो-पैसिफिक सुरक्षा ढांचे का अहम भागीदार मानता है; दूसरी ओर, पाकिस्तान को फिर से सैन्य सहायता देकर संतुलन नीति खेल रहा है। यहां यह भी ध्यान रखना होगा कि पाकिस्तान के साथ यह समझौता ऐसे समय हुआ है जब भारत ने रूस-चीन-केंद्रित मॉस्को फ़ॉर्मैट में सक्रिय भूमिका निभाई है— यानि अमेरिका शायद भारत को यह संदेश देना चाहता है कि उसका क्षेत्रीय प्रभाव अब भी कायम है।
अब सवाल उठता है कि भारत की नीति क्या होनी चाहिए? देखा जाये तो भारत को इस घटनाक्रम को लेकर अति-प्रतिक्रियाशील होने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि हमारी रणनीतिक स्वायत्तता और आधुनिक हथियार प्रणाली पहले से ही श्रेष्ठ स्थिति में हैं। फिर भी, भारत को चाहिए कि Astra Mk-2 और Mk-3 के विकास को तेज़ करे। साथ ही सैटेलाइट-आधारित एरियल अर्ली वार्निंग सिस्टम को और सुदृढ़ बनाया जाये। इसके अलावा, भारत को अपने सहयोगियों— विशेषकर फ्रांस और इज़राइल के साथ टैक्टिकल इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सहयोग को और गहरा करना चाहिए।
बहरहाल, अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को AIM-120 मिसाइलें देना दक्षिण एशिया में एक सावधानीपूर्ण शक्ति पुनर्संतुलन का संकेत है। किंतु यह भी उतना ही स्पष्ट है कि भारत आज ऐसी स्थिति में है जहाँ रणनीतिक आत्मविश्वास और तकनीकी श्रेष्ठता उसे किसी भी क्षेत्रीय असंतुलन से सुरक्षित रख सकती है। पाकिस्तान के लिए यह सौदा जहाँ “सांत्वना पुरस्कार” हो सकता है, वहीं भारत के लिए यह एक नया चेतावनी संकेत है कि प्रतिस्पर्धा अब केवल सीमा पर नहीं, बल्कि आकाश में भी निर्णायक होगी।
(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
