आतंकवाद के खिलाफ भारत की प्रभावी और निरंतर कार्रवाई का सीधा असर अब साफ दिखाई दे रहा है। ऑपरेशन सिंदूर और इसके बाद के अभियानों ने यह साबित कर दिया है कि जब आतंकवाद को उसकी जड़ों में चोट पहुँचाई जाती है तो उसका तंत्र लड़खड़ा जाता है। आज स्थिति यह है कि पाकिस्तान आधारित आतंकवादी संगठन, जो कभी सीमा पार से खुलेआम आतंक फैलाते थे, अब जीवित रहने के लिए नए रास्ते खोजने पर मजबूर हो गये हैं।
जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों का मस्जिदों के नाम पर चंदा इकट्ठा करना और डिजिटल वॉलेट्स के जरिए छिपी हुई फंडिंग करना उनकी कमजोरी को दर्शाता है। यह वह दौर है जहाँ आतंकवादी अब अपने असली एजेंडे को धार्मिक आवरण में ढकने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उनकी यह चालें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेजी से उजागर हो रही हैं।
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भारत की रणनीति यह रही है कि केवल आतंकी ठिकानों को नष्ट करने तक सीमित न रहा जाए, बल्कि उनके वित्तीय नेटवर्क, नेतृत्व और प्रचार तंत्र पर भी सीधा प्रहार किया जाए। यही कारण है कि आज ये संगठन नेतृत्व संकट, संसाधन संकट और वैचारिक असमंजस से जूझ रहे हैं।
हम आपको बता दें कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान आधारित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद (JeM) को खास तौर पर गहरी चोट पहुँची है। भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा चलाए गए इस अभियान ने न केवल पाकिस्तानी आतंकवादी संगठनों के नेटवर्क को तहस-नहस किया था बल्कि उनके नेतृत्व और वित्तीय स्रोतों को भी कमजोर कर दिया था। ऑपरेशन सिंदूर के तहत जैश-ए-मोहम्मद के कई ठिकाने और प्रशिक्षण शिविर ध्वस्त कर दिए गए थे। इससे उनकी भर्ती और प्रशिक्षण गतिविधियों पर लगभग रोक लग गयी है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान जैश के कई वरिष्ठ कमांडर मारे गए थे जिससे संगठन का शीर्ष नेतृत्व बिखर गया और आंतरिक समन्वय बिगड़ गया। इसके अलावा, भारतीय एजेंसियों ने आतंकियों के धन शोधन नेटवर्क और हवाला चैनलों पर करारी चोट की, इसके कारण JeM की फंडिंग लाइनों में बड़ी बाधा उत्पन्न हुई है।
ताज़ा रिपोर्टों के अनुसार, जैश-ए-मोहम्मद ने अब 313 मस्जिदों के निर्माण के नाम पर 3.91 अरब पाकिस्तानी रुपये जुटाने का अभियान छेड़ा है। यह प्रयास लश्कर-ए-तैयबा की तरह विकेंद्रीकरण मॉडल को अपनाने का प्रतीक है, ताकि उनकी गतिविधियाँ एक ही जगह पर केंद्रित न रहें और आसानी से नष्ट न की जा सकें। बताया जा रहा है कि इसके लिए EasyPaisa और Sadapay जैसे मोबाइल भुगतान माध्यमों का उपयोग किया जा रहा है।
बताया जा रहा है कि फाउंडर मसूद अजहर का परिवार, विशेषकर उसका भाई तल्हा अल सैफ़ और बेटा अब्दुल्ला अजहर, इस फंडिंग नेटवर्क को चला रहे हैं। रिपोर्टों के मुताबिक, 250 से अधिक डिजिटल अकाउंट सक्रिय हैं जिनसे पोस्टर, वीडियो और अजहर के पत्र जारी कर लोगों से चंदा माँगा जा रहा है। हम आपको बता दें कि Financial Action Task Force (FATF) की बढ़ती सख्ती के चलते जैश-ए-मोहम्मद और ISI अब खुले बैंकिंग चैनलों की बजाय डिजिटल वॉलेट और गुप्त तरीकों का सहारा ले रहे हैं। यह संकेत है कि अंतरराष्ट्रीय दबाव ने इन संगठनों के लिए पारंपरिक फंडिंग को लगभग असंभव बना दिया है।
बहरहाल, इसमें कोई दो राय नहीं कि ऑपरेशन सिंदूर ने पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को गंभीर झटका दिया है। आज जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठन जीवित रहने के लिए नए रास्ते खोज रहे हैं, लेकिन उनके प्रयास यह भी दर्शाते हैं कि वे हताशा और कमजोरी की स्थिति में पहुँच चुके हैं। भारत के लिए यह अवसर है कि वह अपनी आतंरिक सुरक्षा, सीमा प्रबंधन और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति को और मज़बूत करे ताकि ऐसे संगठनों का पुनरुत्थान संभव न हो सके। वैसे यह भी स्पष्ट है कि आतंकवाद के खिलाफ भारत की आक्रामक नीति न सिर्फ सीमा पार आतंकी ढांचे को कमजोर कर रही है, बल्कि यह भी संदेश दे रही है कि भारत अब किसी भी तरह के आतंक से समझौता नहीं करेगा। आने वाले समय में यदि यह दबाव बना रहा, तो पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का ढांचा और भी तेजी से बिखरना तय है।