सरकार ने कहा है कि भारत के भविष्य के रक्षा कार्यक्रम, ‘सुदर्शन चक्र मिशन’ के संदर्भ में, ‘‘पूर्वानुमानित प्रौद्योगिकियों’’ के माध्यम से भविष्य के युद्ध परिदृश्यों का पूर्वानुमान लगाना और जवाबी कार्रवाई के लिए सटीक, लक्षित प्रणालियां बनाना, तीन-स्तरीय लक्ष्यों में से एक है। देश के सुरक्षा परिदृश्य के व्यापक सारांश में पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) ने कुछ आंकड़े और पिछले 11 वर्षों में विभिन्न रक्षा-संबंधी विकासों की रूपरेखा साझा की है जिसका शीर्षक है ‘भारत की रक्षा और आंतरिक सुरक्षा स्थिति में परिवर्तन’। इसमें कहा गया है, ‘‘अतीत के विपरीत, वर्तमान सरकार के अंतर्गत भारत एक वैश्विक शक्ति बन गया है, एक ऐसा राष्ट्र जो मुद्दों पर दृढ़ता के साथ बोलता है।’’
इस रूपरेखा पर विस्तार से नजर डालें तो उभर कर आता है कि पिछले 11 वर्षों के दौरान, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार के तहत भारत की रक्षा एवं आंतरिक सुरक्षा की स्थिति में व्यापक बदलाव आया है। यह बदलाव सुस्पष्ट उद्देश्य, मजबूत प्रतिरोध और आत्मनिर्भरता की दिशा में निरंतर प्रयास से लैस है। इस सरकार ने लगातार इस बात पर जोर दिया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा से कोई भी समझौता नहीं किया जा सकता और इस सुरक्षा को सुनिश्चित करने हेतु भारत अपनी क्षमता को बेहतर करने एवं ठोस तैयारी के प्रति पूरी तरह सजग रहेगा। इसके परिणामस्वरूप बाहरी एवं आंतरिक, दोनों तरह की चुनौतियों के प्रति अधिक आत्मविश्वासपूर्ण, आधुनिक तथा सक्रिय दृष्टिकोण विकसित हुआ है। अतीत के उलट, वर्तमान सरकार के तहत भारत एक वैश्विक शक्ति बन गया है। यह एक ऐसा राष्ट्र बनकर उभरा है, जो विभिन्न मुद्दों पर अपनी राय पूरी मजबूती से रखता है।
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रक्षा क्षमता को मजबूती
वर्तमान सरकार के कार्यकाल में भारत का रक्षा व्यय लगातार बढ़ा है, जो 2013-14 के 2.53 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2025-26 में 6.81 लाख करोड़ रुपये हो गया है। अब ध्यान केवल हथियार हासिल करने पर ही नहीं, बल्कि घरेलू क्षमता के निर्माण पर भी है। वर्ष 2024-25 के दौरान, रक्षा उत्पादन 1.50 लाख करोड़ रुपये के रिकॉर्ड स्तर को छू गया जोकि 2014-15 के उत्पादन स्तर से तीन गुना से भी अधिक है। लड़ाकू विमान, मिसाइल प्रणालियां, तोपखाना प्रणालियां, युद्धपोत, नौसैनिक पोत, विमानवाहक पोत तथा और भी बहुत कुछ अब भारत में बन रहे हैं। यह इस बात को दर्शाता है कि कैसे आत्मनिर्भरता और प्रतिरोध हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के मूल आधार बन गए हैं। पिछले एक दशक में रक्षा निर्यात चौंतीस गुना बढ़कर 2024-25 में 23,622 करोड़ रुपये का हो गया। भारतीय उपकरण अब संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांस और आर्मेनिया सहित 100 से अधिक देशों को निर्यात किए जाते हैं।
यह सफलता सुधार और नवाचार, दोनों का नतीजा है। नियमों को सुव्यवस्थित करके, निजी क्षेत्र को अवसर प्रदान करके और स्वदेशीकरण को प्राथमिकता देकर, सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि भारत अब केवल रक्षा से जुड़े उत्पादों का एक बड़ा आयातक ही नहीं, बल्कि एक उभरता हुआ निर्यातक भी बने। यह सरकार की इस मंशा को भी स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि भारत अपनी सुरक्षा के लिए कभी किसी अन्य देश पर निर्भर नहीं रहेगा।
रक्षा संबंधी अधिग्रहण और स्वदेशीकरण से जुड़े सुधारों के जरिए आत्मनिर्भरता
पिछले एक दशक से भारत की रक्षा नीति आत्मनिर्भरता के सिद्धांत से प्रेरित रही है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने आयात पर निर्भरता कम करने, स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा देने और वैश्विक स्तर पर रक्षा से जुड़ा एक प्रतिस्पर्धी इकोसिस्टम बनाने के उद्देश्य से संरचनात्मक सुधारों को आगे बढ़ाया है। ये सुधार खरीद, अनुसंधान, उद्योग जगत की भागीदारी और विदेशी निवेश से जुड़े हैं।
रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (डीएपी) 2020 और भारतीय-आईडीडीएम
रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया 2020, जिसे डीपीपी 2016 से संशोधित किया गया है, पूरी तरह से प्रधानमंत्री मोदी द्वारा शुरू किए गए आत्मनिर्भर भारत अभियान के अनुरूप है। यह प्रक्रिया अधिग्रहणों के लिए खरीद (भारतीय- स्वदेशी रूप से डिजाइन, विकसित और निर्मित) श्रेणी को प्राथमिकता देती है, जिससे स्थानीय डिजाइन, विकास और उत्पादन पर अधिकतम निर्भरता सुनिश्चित होती है। यह बदलाव भारतीय-आईडीडीएम परियोजनाओं को खरीद संबंधी पिरामिड में सबसे ऊपर रखता है।
सरलीकृत ‘मेक’ प्रक्रिया
रक्षा प्लेटफार्मों/प्रणालियों के डिजाइन, विकास और उत्पादन में भारतीय उद्योगों की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से मेक प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया गया। मेक श्रेणियों के अंतर्गत, 100 करोड़ रुपये प्रति वर्ष तक की खरीद वाली परियोजनाओं को सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के लिए निर्धारित किया गया है।
-मेक-I: सरकार विकास लागत के 70 प्रतिशत हिस्से या प्रति विकास एजेंसी (डीए) अधिकतम 250 करोड़ रुपये तक की राशि को वित्त पोषित करती है।
-मेक-II: उद्योग द्वारा वित्त पोषित परियोजनाएं, पात्रता में ढील, उद्योग से स्वतः प्रस्तावों की स्वीकृति और सफल प्रोटोटाइप के विकास पर एल1 विकास एजेंसी को ऑर्डर का आश्वासन।
-मेक-III: टीओटी/ विदेशी ओईएम के साथ सहयोग के जरिए भारत में निर्मित।
अब तक सेना, नौसेना, वायु सेना एवं आईडीएस मुख्यालय की 146 परियोजनाओं को विभिन्न ‘मेक’ श्रेणियों के तहत ‘सैद्धांतिक स्वीकृति’ दी जा चुकी है।
एफडीआई से जुड़ी प्रक्रिया का उदारीकरण
पूंजी और उन्नत प्रौद्योगिकी को आकर्षित करने के उद्देश्य से रक्षा क्षेत्र में एफडीआई से जुड़ी प्रक्रिया को उदार बनाया गया-
-नए औद्योगिक लाइसेंसों के लिए स्वतः अनुमोदन के जरिए 74 प्रतिशत की अनुमति।
-उन्नत प्रौद्योगिकी से जुड़े मामलों में सरकारी अनुमोदन के जरिए शत-प्रतिशत तक की अनुमति।
नवाचार को बढ़ावा: आईडेक्स और टीडीएफ
-वर्ष 2018 में शुरू किया गया रक्षा संबंधी उत्कृष्टता हेतु नवाचार (आईडेक्स), रक्षा से जुड़े नवाचार के लिए अनुदान के साथ स्टार्ट-अप, एमएसएमई और शिक्षा जगत को सहायता प्रदान करता है।
-प्रौद्योगिकी विकास कोष (टीडीएफ) रक्षा एवं एयरोस्पेस से जुड़ी उन्नत प्रौद्योगिकियों के निर्माण हेतु एमएसएमई और स्टार्ट-अप को 10 करोड़ रुपये तक का अनुदान प्रदान करता है।
स्वदेशीकरण पोर्टल और सकारात्मक सूचियां
सृजन पोर्टल (2020) उद्योग जगत को पूर्व में आयात की जाने वाली वस्तुओं को स्थानीय स्तर पर विकसित करने में समर्थ बनाता है। अब तक, 46,798 से अधिक वस्तुओं को सूचीबद्ध किया जा चुका है।
डीपीएसयू द्वारा जारी सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची में 5,012 वस्तुओं (पांच चरणों में) की पहचान की गई है, जोकि आयात पर चरणबद्ध प्रतिबंध का संकेत देता है।
-पहली सूची: 2,851 वस्तुएं
-दूसरी सूची: 107 वस्तुएं
-तीसरी सूची: 780 वस्तुएं
-चौथी सूची: 928 वस्तुएं
-पाँचवीं सूची: 346 वस्तुएं
ऑफसेट और रणनीतिक साझेदारियां
-ऑफसेट पोर्टल (2019) ने ऑफसेट अनुबंधों में पारदर्शिता बढ़ाई है, जिससे ओईएम को भारतीय उत्पादन में निवेश करने और वैश्विक स्तर पर आपूर्ति हेतु भारत से रक्षा उत्पादों को हासिल करने के लिए प्रोत्साहन मिला है।
-रणनीतिक साझेदारी (एसपी) मॉडल (2017) भारतीय फर्मों को वैश्विक ओईएम के साथ जुड़ने की अनुमति देता है, जिससे भारत में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और संयुक्त बुनियादी ढांचे का निर्माण संभव हो पाया है।
अंतरराष्ट्रीय रक्षा सहयोग
भारत ने घरेलू मैन्यूफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से विभिन्न समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। विशेषकर, रूस के साथ हुआ 2019 का अंतर-सरकारी समझौता भारत में रूसी-निर्मित प्लेटफार्मों के लिए पुर्जों के संयुक्त उत्पादन को संभव बनाता है, जिससे आयात पर निर्भरता कम होती है और संचालन संबंधी तैयारी बेहतर होती है।
रक्षा क्षेत्र में व्यवसाय करने में आसानी के लिए विभिन्न प्रक्रियाओं को सरल बनाया गया है-
-कई पुर्जों/घटकों के लिए औद्योगिक लाइसेंस की जरूरत को खत्म कर दिया गया है।
-लाइसेंस की वैधता 3 वर्ष से बढ़ाकर 15 वर्ष कर दी गई है (3 वर्ष के विस्तार के साथ)।
-अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) को उद्योग जगत, स्टार्ट-अप और शिक्षा जगत के लिए खोल दिया गया है और रक्षा क्षेत्र से संबंधित अनुसंधान एवं विकास के बजट का 25 प्रतिशत हिस्सा उनके लिए निर्धारित किया गया है।
तकनीक और एआई का समावेश
रक्षा प्रणालियों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के समावेश को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सरकार ने रक्षा एआई परिषद (डीएआईसी) और रक्षा एआई परियोजना एजेंसी (डीएआईपीए) का गठन किया है। प्रत्येक डीपीएसयू ने एआई से संबंधित खाका को अंतिम रूप दिया।
डीआरडीओ ने अनुसंधान के लिए नौ प्रमुख क्षेत्रों की पहचान की है: प्लेटफार्म, हथियार प्रणालियां, सामरिक प्रणालियां, सेंसर एवं संचार, अंतरिक्ष, साइबर सुरक्षा, एआई एवं रोबोटिक्स, सामग्री एवं उपकरण, तथा सैनिक सहायता।सीमा पार आतंकवाद के विरुद्ध कार्रवाई
Operation Sindoor: Know what India has achieved
भारत ने सीमा पार आतंकवाद के विरुद्ध एक दृढ़ और स्पष्ट दृष्टिकोण अपनाया है। पिछले एक दशक के दौरान की गई कार्रवाई का पैटर्न इसी नीति को दर्शाता है। वर्ष 2016 में उरी हमले के बाद, भारत ने नियंत्रण रेखा के पार सर्जिकल स्ट्राइक की। वर्ष 2019 में पुलवामा हमले के बाद, भारत ने बालाकोट में एक आतंकवादी शिविर पर सटीक हवाई हमले किए।
सबसे हालिया और निर्णायक कार्रवाई मई 2025 में ऑपरेशन सिंदूर के रूप में की गई। पहलगाम में आम नागरिकों की हत्या के जवाब में, भारत ने अपने सशस्त्र बलों को कार्रवाई करने की पूरी आजादी दी। ड्रोन और सटीक हथियारों का उपयोग करते हुए, उन्होंने पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू एवं कश्मीर में नौ आतंकवादी शिविरों पर हमला किया। कुल 100 से अधिक आतंकवादियों का सफाया कर दिया गया, जिनमें आईसी-814 अपहरण और पुलवामा हमले से जुड़े लोग भी शामिल थे। पाकिस्तान ने ड्रोन और मिसाइलों से जवाबी हमले करने की कोशिश की, लेकिन भारतीय ड्रोन-रोधी प्रणालियों ने उन्हें नाकाम कर दिया।
वर्ष 2025 के स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दिए गए अपने संबोधन में, प्रधानमंत्री मोदी ने ऑपरेशन सिंदूर को “एक नया मानदंड” बताया, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि जब भी आतंकवाद भारत के नागरिकों के लिए खतरा बनेगा, तो भारत पूरी ताकत से जवाब देगा।
पाकिस्तान के संदर्भ में प्रधानमंत्री मोदी के पांच नए मानदंड
प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान से निपटने को लेकर निरंतर स्पष्ट सीमाएं निर्धारित की हैं। ये पांच लाल रेखाएं अब भारत के दृष्टिकोण को परिभाषित करती हैं-
-आतंकवादी हमलों का करारा जवाब– भारत पर किसी भी हमले का निर्णायक जवाब दिया जाएगा।
-परमाणु ब्लैकमेल को सहन नहीं किया जाएगा – परमाणु हमले की धमकियां भारत को आतंकवादियों के ठिकानों पर हमला करने से नहीं रोक सकेंगी।
-आतंकवादियों और उनके प्रायोजकों के बीच कोई भेद नहीं – दोनों को समान रूप से जवाबदेह ठहराया जाएगा।
-किसी भी वार्ता में पहले आतंकवाद पर चर्चा – यदि पाकिस्तान के साथ कोई बातचीत होती है, तो वह केवल आतंकवाद या पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पर केन्द्रित होगी।
-संप्रभुता से बिल्कुल कोई समझौता नहीं – “आतंकवाद और वार्ता साथ-साथ नहीं चल सकते, आतंकवाद और व्यापार साथ-साथ नहीं चल सकते, तथा खून और पानी साथ-साथ नहीं बह सकते।”सुदर्शन चक्र मिशन
तात्कालिक कार्रवाइयों से परे, मोदी सरकार दीर्घकालिक खतरों से निपटने की भी तैयारी कर रही है। वर्ष 2025 के स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दिए गए अपने भाषण में, प्रधानमंत्री मोदी ने एक भविष्योन्मुखी रक्षा कार्यक्रम, सुदर्शन चक्र मिशन की घोषणा की। इस मिशन के तीन लक्ष्य हैं- यह सुनिश्चित करना कि पूरी प्रणाली का अनुसंधान, विकास और निर्माण भारत में ही हो; भविष्यसूचक तकनीकों के जरिए भावी युद्ध के परिदृश्यों का पूर्वानुमान लगाना; और जवाबी कार्रवाई हेतु सटीक व लक्षित प्रणालियों का निर्माण करना। इस मिशन का उद्देश्य 2035 तक सामरिक और नागरिक, दोनों प्रकार की परिसंपत्तियों के लिए एक व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा कवच प्रदान करना है।
घरेलू मोर्चे को सुरक्षित बनाना
इस सरकार के कार्यकाल में आंतरिक सुरक्षा के मामले में भी उल्लेखनीय प्रगति हुई है। वामपंथी उग्रवाद (एलडब्ल्यूई), जो कभी एक गंभीर चुनौती हुआ करता था, अब नियंत्रण में है। वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित जिलों की संख्या घटकर बीस से भी कम रह गई है। पिछले एक दशक में 8,000 से अधिक नक्सलियों ने हिंसा का रास्ता छोड़ दिया है। उग्रवादी हिंसा की घटनाएं, जो 2010 में 1,936 थीं, 2024 में घटकर 374 रह गईं। इसी अवधि में नागरिकों और सुरक्षा बलों के हताहत होने की संख्या में 85 प्रतिशत की कमी आई।
ये परिणाम न केवल सुरक्षा अभियानों की सफलता को दर्शाते हैं, बल्कि उन क्षेत्रों में विकास एवं शासन पर ध्यान केन्द्रित करने पर दिए गए जोर को भी दर्शाते हैं जो कभी विकास से कटे हुए थे। सड़कों, संचार व्यवस्था व स्कूलों के विकास और कल्याणकारी उपायों ने चरमपंथियों की जमीन खिसका दी है।
रक्षा क्षेत्र से परे आत्मनिर्भरता
आत्मनिर्भरता की दिशा में भारत का सफर रक्षा क्षेत्र से आगे बढ़कर खाद्य, स्वास्थ्य, ऊर्जा, प्रौद्योगिकी और वित्तीय समावेशन तक जा पहुंचा है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस बात पर जोर दिया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा में अब ये महत्वपूर्ण क्षेत्र भी शामिल हैं ताकि यह सुनिश्चित हो कि देश वैश्विक चुनौतियों का सामना करने में सक्षम बना रहे और 2030 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में तेजी से आगे बढ़े।
बहरहाल, मोदी सरकार के तहत भारत की रक्षा एवं आंतरिक सुरक्षा की स्थिति में मजबूती व स्पष्टता आई है और आत्मनिर्भरता की दिशा में एक निर्णायक बदलाव आया है। रक्षा क्षेत्र में रिकॉर्ड निवेश, स्वदेशी उत्पादन में तेज वृद्धि, साहसिक सुधारों और उभरती प्रौद्योगिकियों के समावेश के साथ, भारत रक्षा उपकरणों के एक प्रमुख आयातक से हटकर एक उभरते वैश्विक निर्यातक के रूप में सामने आ रहा है। आतंकवाद के विरुद्ध सख्त रवैया, पाकिस्तान के मामले में नए मानदंडों की स्पष्ट अभिव्यक्ति और सुदर्शन चक्र मिशन जैसी भविष्योन्मुखी पहल एक दूरदर्शी सुरक्षा सिद्धांत को रेखांकित करती हैं।
साथ ही आंतरिक स्थिरता, खाद्य एवं ऊर्जा सुरक्षा, वित्तीय समावेशन और प्रौद्योगिकीय नवाचार में हुई प्रगति इस बात को दर्शाती है कि आत्मनिर्भरता केवल रक्षा तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह सुदृढ़ और आत्मविश्वास से भरे एक ऐसे भारत की नींव रखती है, जो वैश्विक स्तर पर अग्रणी बनने की अपनी राह में आने वाली पारंपरिक व गैर-पारंपरिक, दोनों किस्म की चुनौतियों का डटकर सामना करने के लिए तैयार है। यह क्रांतिकारी बदलाव आने वाले वर्षों में देश को हर दृष्टि से विकसित भारत बनाने के सरकार के दृढ़ संकल्प को दर्शाता है। यह इस बात की भी पुष्टि करता है कि यह सरकार केवल बयानबाजी में ही विश्वास नहीं रखती, बल्कि उसने वास्तव में भारत को विकसित बनाने के लिए हर जरूरी काम किया है और कर रही है।