लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देशवासियों को संबोधित करते हुए हाईपॉवर डेमोग्राफी मिशन की घोषणा कर देश के सीमावर्ती जिलों में अवैध घुसपैठियों और अन्य कारणों से देश में आ रहे डेमोग्राफी बदलाव की समस्या के समाधान की आस बंधी है। देश के कुछ हिस्सों खासतौर से सीमावर्ती जिलों में आबादी असंतुलन से बड़ी समस्या होती जा रही है। डेमोग्राफी मिशन को राजनीतिक लाभ हानि की दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए। अपितु जो तस्वीर देश में सामने आ रही है उससे सबसे बड़ी और गंभीर समस्या सीमावर्ती क्षेत्र की सुरक्षा को लेकर आ गई है। हांलाकि राजनीतिक दल वोट बैंक के चलते बांग्लादेशियों, रोहिंग्याओं सहित अवैध प्रवास कर रहे लोगों के पक्ष में आ जाते हैं पर यह सीधा-सीधा राष्ट्रीय सुरक्षा का गंभीर मुद्दा होता जा रहा है। पिछले दिनों अमेरिका के लॉस एंजिल्स की घटना पर ध्यान दिया जाना जरुरी हैं जहां वाहनों को जलाते और लूटपाट मचाकर कानून व्यवस्था को ही तहस-नहस करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। फ्रांस में भी इस तरह की घटनाएं होती रही हैं। रवांडा, पश्चिमी वाल्मिक, यारोपीय देश आदि दुनिया के अनेक देश इस समस्या से दो चार होते रहे हैं। अमेरिका के चुनाव परिणाम किस तरह से लांस एंजिल्स में प्रभावित होते हैं वह सबके सामने हैं। हमारे देश में पश्चिमी बंगाल, असम, बिहार, उत्तरप्रदेश, उत्तराखण्ड, झारखण्ड आदि कई दृष्टि से प्रभावित हो रहे हैं। बांग्लादेशी, रोहिंग्या अवैध घुसपैठ कर देश के हर कोने में आसानी से पहुंच रहे हैं और जब किसी तरह की घटना होती हैं तो इनके द्वारा आंतक और अशांति फैलाई जाती है वह भी किसी से नहीं है।
दुनिया के देशों में अवैध घुसपैठियों के खिलाफ सख्ती से कार्रवाई की जाती है। चीन जैसे देश तो इतने कठोर कदम उठाते हैं कि कभी पता ही नहीं चल सकता की स्वतंत्रता क्या होती है उसका पता ही नहीं चलता। अफगान सीमा पर तो गोली मार दी जाती है। क्यूबा में राजनीतिक जेल में बंद हो जाते हैं। सउदी अरब में भी जेल में बंद कर दिया जाता है। ठीक इसके विपरीत हमारे हालात है। हमारे यहां राजनीतिक संरक्षण मिल जाता है। सोशल एक्टिविस्ट सक्रिय हो जाते हैं। हमारे यहां तो अवैध कब्जा, राशनकार्ड, निःशुल्क सुविधाओं से लाभान्वित करवाने वाले सक्रिय हो जाते हैं। सच में देखा जाए तो राष्ट्रीय सुरक्षा से एक तरह से लेना देना ही नहीं रहता। यही कारण है कि बांग्लादेशी हो या रोंहिग्या हो या पाकिस्तान परस्त लोग देश की सुरक्षा और अशांति फैलाने में कोई कमी नहीं छोड़ते हैं। ज्योंही कहीं पर कोई कार्रवाई करने को प्रशासन आगे आता है तो इनके बचाव में मानवीयता का नारा उछालने लगते हैं। यह अपने आप में दुर्भाग्यपूर्ण हालात है।
डेमोग्राफी का सबसे पहले प्रयोग 1855 में बेल्जियम के अकिल गुडलार्ड ने अपनी पुस्तक एलिमेंट्स ऑफ ह्यूमन डेमोग्राफी में किया। हांलाकि जनसांख्यकी की बात राबर्ट माल्थस 1766 से 1834 में कर चुके हैं और उन्होंने पूरी थ्योरी प्रस्तुत की है। डेमोग्राफिक अध्ययन को दो तरह से समझना पड़ेगा। एक तो सामान्य तौर पर जिस तरह से आयु-धर्म के आधार पर जनसांख्ययीय अध्ययन कर विकास की रुपरेखा तैयार की जाती है। यह एक तरह से इस समस्या का समाधान डेमोग्राफिक अध्ययन के परिणामों के आधार पर नीति व योजनाएं बनाकर की जाती है और की जा सकती है। इसके ठीक विपरीत जिस तरह से देश में अराजकता और अशांति फैलाने और घुसपैठ व वर्गविशेष के कारण जनसंख्या में बदलाव लाकर क्षेत्रीय असंतुलन पैदा करने का प्रयास किया जाता है वह अधिक गंभीर व चिंतनीय हो जाती है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा डेमोग्राफी मिशन की घोषणा के निश्चित रुप से राजनीतिक अर्थ निकालने के प्रयास किये जायेंगे। इसे लंबे समय से भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक द्वारा घुसपैट और सीमावर्ती क्षेत्रों में अवैध मदरसों आदि द्वारा संचालित गतिविधियों के खिलाफ आवाज उठाई जा रही है उससे जोड़कर देखने का प्रयास किया जाएगा। यहां इसको भी ध्यान में रखना होगा कि अवैध घुसपैठियों द्वारा सीमावर्ती जिलों में जिस तरह से आदिवासियों की जमीन और संपत्ती पर कब्जा किया जा रहा है यह भी किसी से छिपा नहीं हैं। बीएसएफ और एसएसएफ द्वारा जिस तरह से सरकार को लगातार रिपोर्टें दी जाती रही हैं पहलीवार उसे गंभीरता से लिया जा रहा है। बीएसएफ के पूर्व एडीजी पीके मिश्रा का कहना है कि डेमोग्राफी मिशन को राजनीतिक चश्में से नहीं देखा जाना चाहिए। यह तो सीधा सीधा राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा है। आज समूचा देश डेमोग्राफिक समस्या से दो चार हो रहा है। इसे नेपाल, बांग्लादेश, सीमावर्ती इलाकों में मुसलमान और हिंदुओं की आबादी में आ रहे बदलाव आदि से देखना होगा। प्रधानमंत्री की चिंता किसी एक क्षेत्र या सीमा तक नहीं है। इसका बड़ा कारण देश में डेमोग्राफिक समस्या की गंभीरता को समझने से ही होगा। आने वाले दिनों में बिहार, बंगाल आदि में चुनाव होने हैं और राजनीतिक दल इस घोषणा को निश्चित रुप से मुद्दा बनायेंगे, इससे इंकार नहीं किया जा सकता। पर धरातलीय समस्या से आंख नहीं मूंदी जा सकती। बंगाल की मुर्शिदाबाद, बिहार का किशनगंज, उत्तरप्रदेश का नेपाल सीमावर्ती क्षेत्र, असम के आदिवासी क्षेत्र, पश्चिमी बंगाल और झारखण्ड के हालात सामने हैं। सीमावर्ती सहित इन क्षेत्रों में मदरसों द्वारा जिस तरह का वातावरण तैयार किया जा रहा है उससे डेमोग्राफी बदलती जा रही है। कश्मीर का उदाहरण हमारे सामने है आज कश्मीरी पंडितों का कश्मीर से विस्थापन हो चुका है।
डेमोग्राफी मिशन के पक्ष विपक्ष में अंतहिन विवाद किया जा सकता है पर दो टके का सवाल यही है कि देश को किसी भी हालत में आंतरिक व राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर किसी तरह का कोई समझौता नहीं किया जाना चाहिये। जिस तरह से देश के कई पॉकेट्स में तेजी से डेमोग्राफिक असंतुलन बन रहा है उसे देखते हुए देरी से ही सही पर डेमोग्राफिक मिशन की घोषणा स्वागतीय है। सभी को दलीय राजनीति से उपर उठकर इसका स्वागत किया जाना चाहिए। यह साफ हो जाना चाहिए कि देश की आंतरिक और सीमावर्ती सुरक्षा को कोई खतरा नहीं होना चाहिए। कोई भी राष्ट्र् इसे स्वीकार भी नहीं करेगा। घुसपैठियों के कारण जिस तरह की समस्याएं और आदिवासियों की भूमि पर कब्जा करने से लेकर देश की आम जनता के लिए लोक हितकारी योजनाओं में सैंध लगा रहे हैं उसे रोका जाना अतिआवश्यक हो गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस भावना के साथ मिशन की घोषणा की है उसी भावना और मंशा के साथ इस मिशन को आकार दिया जाना चाहिए और पूरी कार्ययोजना बनाकर इसे जल्द से जल्द से आकार दिया जाना चाहिए ताकि डेमोग्राफिक मिशन अपना कार्य आरंभ कर सके। डेमोग्राफिक संतुलन व सीमाओं की सुरक्षा के साथ ही योजनावद्ध तरीके से असंतुलन के जो प्रयास किये जा रहे हैं उस पर प्रभावी अंकुश लगाया जाना जरुरी है। इसे राजनीतिक विवाद से दूर ही रखा जाना चाहिए। सोशल एक्टिविस्टों को भी राष्ट्रहित को पहली प्राथमिकता देनी ही होगी।
– डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा