भारत पर इन दिनों तीन समानांतर मोर्चों पर रणनीतिक दबाव बनाने की कोशिशें हो रही हैं। एक ओर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए ऊँचे आयात शुल्क और व्यापार वार्ताओं में गतिरोध है तो दूसरी ओर हिंद महासागर क्षेत्र में चीन-पाकिस्तान के बढ़ते नौसैनिक गठजोड़ से उत्पन्न सुरक्षा खतरे हैं। तीसरी ओर पाकिस्तानी सेना प्रमुख की गीदड़ भभकियां हैं। देखा जाये तो यह तीनों स्थितियाँ भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और दीर्घकालिक राष्ट्रीय हितों के लिए गंभीर परीक्षा की तरह हैं।
हम आपको बता दें कि एक दिन पहले विदेश मामलों की संसदीय समिति की बैठक हुई तो सदस्यों ने इन्हीं तीनों मुद्दों को लेकर सरकार से कई सवाल पूछे। संसदीय समिति के समक्ष विदेश सचिव विक्रम मिस्री और वाणिज्य सचिव सुनील बर्थवाल ने साफ कहा कि भारत-अमेरिका व्यापार वार्ताओं में कुछ ‘रेड लाइन’ पार नहीं की जा सकतीं। इनमें प्रमुख है— अमेरिका की कृषि और डेयरी क्षेत्र को भारतीय बाजार में व्यापक पहुँच देने की मांग, जिस पर भारत ने सख्त रुख अपनाया है। हम आपको बता दें कि ट्रंप प्रशासन ने भारतीय उत्पादों पर 25% अतिरिक्त शुल्क लगाकर कुल शुल्क 50% तक पहुँचा दिया है और चेतावनी दी है कि विवाद सुलझे बिना नई व्यापार वार्ता नहीं होगी। इस दबाव के बावजूद भारत ने अपने रुख में ढील नहीं दी और ‘निर्यात विविधीकरण रणनीति’ के तहत अन्य देशों के साथ व्यापार समझौतों को बढ़ावा देने की तैयारी शुरू कर दी है। यह रुख दर्शाता है कि भारत आर्थिक हितों के मामले में भी सामरिक स्वायत्तता बनाए रखने को तैयार है, भले ही उसके रणनीतिक साझेदार अमेरिका से अस्थायी तनाव क्यों न पैदा हो।
इसके अलावा, संसदीय समिति की एक अन्य रिपोर्ट ने हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैन्य मौजूदगी और पाकिस्तान के साथ उसके नौसैनिक गठजोड़ पर गंभीर चिंता जताई। रिपोर्ट के अनुसार, चीन अब दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना का मालिक है, जो हर साल 15 से अधिक नए जहाज अपने बेड़े में शामिल कर रहा है। देखा जाये तो चीन की यह सक्रियता भारत के समुद्री हितों, रणनीतिक स्वायत्तता और प्रमुख समुद्री मार्गों पर प्रभाव को चुनौती देती है। साथ ही, पाकिस्तान के साथ उसकी सैन्य साझेदारी हिंद महासागर में शक्ति संतुलन को बदलने की क्षमता रखती है। हम आपको बता दें कि भारत की 7,500 किमी लंबी तटरेखा और 1,300 से अधिक द्वीप इसे स्वाभाविक रूप से हिंद महासागर की महाशक्ति बनाते हैं, लेकिन यह स्थिति तभी टिकाऊ होगी जब भारत अपनी नौसैनिक क्षमताओं और क्षेत्रीय साझेदारियों को समय रहते मज़बूत करे।
इसके अलावा, संसदीय समिति की बैठक में संसद सदस्यों ने सरकार के सामने पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर द्वारा अमेरिका में रहते हुए दिए गए ‘परमाणु धमकी भरे बयान’ का मुद्दा उठाया। उन्होंने पूछा कि अमेरिका जैसे “रणनीतिक सहयोगी” की धरती से ऐसा बयान कैसे दिया जा सकता है, साथ ही यह भी इंगित किया कि पहलगाम आतंकी हमले से पहले आये मुनीर के बयान का भी अमेरिका से संबंध था। बताया जाता है कि सरकार ने संकेत दिया है कि इस मुद्दे को अमेरिकी दूतावास के साथ उठाया जा सकता है। सूत्रों के अनुसार, सांसद असदुद्दीन ओवैसी, दीपेंद्र हुड्डा और जॉन ब्रिटास ने विदेश सचिव विक्रम मिस्री से पूछा कि मुनीर ने अमेरिका यात्रा के दौरान भारत को परमाणु धमकी कैसे दी। इस पर मिस्री ने बताया कि विदेश मंत्रालय ने इस आपत्तिजनक टिप्पणी पर प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि यह पाकिस्तान की पुरानी आदत है और भारत “परमाणु ब्लैकमेल” के आगे नहीं झुकेगा। इसके बावजूद मिस्री से पूछा गया कि इतना गंभीर बयान अमेरिका से कैसे जारी हो सकता है।
सूत्रों के मुताबिक, ओवैसी ने यह भी इंगित किया कि पहलगाम आतंकी हमले से पहले मुनीर का भड़काऊ बयान भी अमेरिका में रह रहे पाकिस्तानी प्रवासी समुदाय को संबोधित करते हुए दिया गया था। बताया जा रहा है कि ओवैसी की इस बात को अन्य सदस्यों ने भी आगे बढ़ाया। दिलचस्प बात यह रही कि संसदीय समिति के अध्यक्ष शशि थरूर ने हस्तक्षेप करते हुए विदेश सचिव से कहा कि सरकार को नई दिल्ली स्थित अमेरिकी प्रतिनिधि के साथ इस मुद्दे पर चर्चा करनी चाहिए, ताकि अमेरिका की धरती से भारत को धमकी देने की पुनरावृत्ति न हो। सूत्रों के अनुसार, मिस्री ने कहा कि इस मुद्दे को यहाँ अमेरिकी अधिकारी के साथ उठाया जाएगा। हम आपको बता दें कि मुनीर का बयान देश में गहरी चिंता का विषय बना हुआ है, खासकर इसलिए कि पहलगाम आतंकी हमला उनके बयान के तुरंत बाद हुआ, जिससे उनकी ताजा धमकी को और गंभीरता मिल गई है। बाद में शशि थरूर ने पत्रकारों को बताया कि सदस्यों ने मुनीर की “परमाणु धमकी भरी बयानबाज़ी” पर सवाल उठाए। बाइट।
दूसरी ओर, अमेरिका की टैरिफ वार और चीन-पाक गठजोड़ का समाधान एक संतुलित, दृढ़ और दूरदर्शी कूटनीति से ही संभव है। आर्थिक स्तर पर भारत को अमेरिका जैसे बड़े बाजार के साथ संवाद जारी रखते हुए निर्यात विविधीकरण को तेज़ करना होगा। साथ ही सुरक्षा स्तर पर हिंद महासागर में नौसैनिक उपस्थिति, क्षेत्रीय सहयोग (जैसे क्वाड) और समुद्री निगरानी क्षमताओं को मज़बूत करना होगा। भारत जिस मोड़ पर खड़ा है, वहाँ व्यापारिक और सामरिक—दोनों नीतियों का घनिष्ठ तालमेल आवश्यक है। एक तरफ अमेरिकी दबाव में अपनी ‘रेड लाइन’ बचाना और दूसरी तरफ हिंद महासागर में चीन-पाक दबाव का मुकाबला करना, दोनों ही कार्य दीर्घकालिक राष्ट्रीय हितों से जुड़े हैं। यह परीक्षा सिर्फ सरकार की आर्थिक या रक्षा नीतियों की नहीं, बल्कि भारत की रणनीतिक पहचान की है।