बिहार विधानसभा चुनाव के तहत 6 और 11 नवंबर को होने वाले क्रमशः प्रथम और द्वितीय चरण के मतदान की उलटी गिनती अब शुरू हो चुकी है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक, अभी तक किसी भी पार्टी या गठबंधन के पक्ष में किसी स्पष्ट लहर के संकेत नहीं मिले हैं, जबकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से सबकी सहानुभूति है, यह बात स्पष्ट रूप से उभर कर सामने आ रही है। 
वहीं, अब तक आए सात प्रमुख चुनाव पूर्व-सर्वेक्षणों, यथा- लाइवमिंट, जेवीसी पोल, सी वोटर, न्यूज एक्स, लोक पोल, वोट विबे (अमिताभ तिवारी) और अन्य- के रुझानों यानी पोल ऑफ द पोल्स से कुछेक रोचक और कांटे की टक्कर होने के स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं। साथ ही यह भी पता चलता है कि त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति में कहीं एनडीए को तो कहीं इंडी गठबंधन को लेने के देने पड़ सकते हैं।
यही वजह है कि अभी तक आये आधा दर्जन से अधिक चुनाव पूर्व सर्वेक्षण सोशल मीडिया पर भी अपनी खूब सुर्खियां बटोर रहे हैं और बिहारी मतदाताओं के मूड को समझने का स्पष्ट और सबसे ताजा जरिया बने हुए हैं। वहीं, व्यक्तिगत बातचीत से भी पता चल रहा है कि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में अबतक किसी भी पार्टी के पक्ष में कोई स्पष्ट लहर नहीं, लेकिन सूबे के कद्दावर मुख्यमंत्री समझे जाने वाले नीतीश कुमार से सबकी सहानुभूति है!
शायद इसलिए कि उन्होंने बिहार से जंगलराज को समाप्त करके सुशासन और विकास की सरकार देने में खूब सफलता पाई। वहीं, जिन्होंने भी उन्हें हल्के में लिया, उसे अपने भारी होने का एहसास करवाने में जरा-सी भी देरी नहीं की और भाजपा-कांग्रेस-राजद को उसके सियासी जूते के आकार में समेटे रखा। ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर वाला उनका सियासी अंदाज इस बार भी चर्चा का विषय बना हुआ है। 
खासकर बिहार के सियासी चाणक्य समझे जाने वाले नीतीश कुमार 14 नवम्बर के बाद कौन-सी सियासी चाल चलेंगे, इस पर अब उनके सहयोगियों-विरोधियों दोनों की नजरें टिकी हुई हैं। शायद उनके इसी अंदाज से उनके समर्थक और विरोधी मतदाताओं की भी दुविधा बढ़ी हुई है, जिसका उन्हें लाभ और हानि दोनों होने के आसार प्रबल हैं। विभिन्न सर्वेक्षणों के मुताबिक, वोट शेयर का औसत इस प्रकार है- एनडीए यानी (बीजेपी + जेडीयू + सहयोगी) को जहां 38 से 40 प्रतिशत मत मिलने के अनुमान हैं, जबकि इंडी गठबंधन यानी (आरजेडी + कांग्रेस + वाम) को 37–39 प्रतिशत मत मिलने के अनुमान हैं। वहीं, नवोदित जन सुराज (प्रशांत किशोर) पार्टी को 8–10 प्रतिशत मत मिलने के संकेत मिल रहे हैं, जबकि अन्य (छोटे दल + निर्दलीय) को भी 10–12 प्रतिशत मत मिलने के आसार प्रबल हैं।
इन बातों से साफ पता चलता है कि वोट शेयर में महज 1–2 प्रतिशत का फासला दोनों बड़े गठबंधनों के बीच है। लोक पोल ने इंडी गठबंधन को 38.5 प्रतिशत और एनडीए  को 37.2 प्रतिशत देकर भले ही मामूली बढ़त दिखाई है, जबकि वोट विबे में भी अंतर सिर्फ 1 प्रतिशत (इंडी 36 प्रतिशत, एनडीए 35 प्रतिशत) का रहा है। वहीं, जेवीसी ने एनडीए को 41 प्रतिशत तक का अनुमान दिया, जो सबसे ऊंचा है।
जहां तक सीटों के प्रोजेक्शन का सवाल है तो एनडीए को 110–130 सीटें, इंडी गठबंधन को 105–120 सीटें और जन सुराज + अन्य को 8–15 सीटें मिलने का अनुमान है। उल्लेखनीय है कि 243 सीटों वाली विधानसभा में बहुमत के लिए किसी भी दल या गठबंधन को 122 सीटें चाहिए। जबकि सी वोटर और न्यूज एक्स ने एनडीए को 125–135 तक पहुंचाया है, लेकिन लॉक पोल ने इंडी गठबंधन को 118–126 का एज दिया है। जबकि वोट विबे ने एनडीए को 115–120 सीटें और इंडी गठबंधन को 110–118 सीटों के बीच रखा है। इस प्रकार कुल मिलाकर, हंग असेंबली की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है।
जहां तक सामाजिक-जातिगत ब्रेकअप का सवाल है तो एक तरफ महिलाएं एनडीए को 45–48 प्रतिशत तक समर्थन दे रही हैं, क्योंकि नीतीश सरकार की लोकलुभावन योजनाओं यथा- साइकिल, शराबबंदी, 10-10 हजार खाते में, आदि के कारण उन्हें फायदा पहुंचा है। वहीं, युवा वर्ग (18–35 वर्ष वाले) नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के नौकरी वाले वायदों से इंडी गठबंधन को 42–45 प्रतिशत तक समर्थन दे रहे हैं।
इसके अलावा, मुस्लिम + यादव आज भी इंडी गठबंधन के कोर वोटर्स बने हुए हैं और उन्हें 75–80 प्रतिशत समर्थन दे रहे हैं। वहीं, ऊपरी जाति के सवर्ण + ईबीसी एनडीए के मजबूत आधार बने हुए हैं और उन्हें 60–65 प्रतिशत तक समर्थन दे रहे हैं। वहीं, दलित (महादलित वनाम पासवान) के चलते जहां महादलित एनडीए में हैं, वहीं पासवान एनडीए व इंडी गठबंधन में बंटे बताए जाते हैं।
जहां तक मुख्यमंत्री के चेहरे की लोकप्रियता का सवाल है तो एनडीए की ओर से बीजेपी के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी को अपने मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बनाए जाने से इंडी गठबंधन के तेजस्वी यादव सब पर भारी पड़ रहे हैं। जहाँ तेजस्वी यादव 35–38 प्रतिशत समर्थन के साथ सर्वे में सबसे आगे बताए गए, वहीं नीतीश कुमार 22–28 प्रतिशत जनसमर्थन के  साथ दूसरे स्थान पर बने हुए हैं। यानी कि 20 वर्षों के एंटी-इनकंबेंसी के बावजूद उनकी स्थिति मजबूत बनी हुई है। उधर, जनसुराज पार्टी के नेता प्रशांत किशोर 8–12 प्रतिशत जनसमर्थन के साथ नए विकल्प के रूप में उभरते हुए नजर आ रहे हैं।
जहां तक एंटी-इनकंबेंसी और मुद्दे की बात है तो नीतीश सरकार के खिलाफ एंटी-इनकंबेंसी 45–50 प्रतिशत तक बढ़ी हुई है, लेकिन एनडीए को बीजेपी की ब्रांडिंग बचा रही है। वहीं टॉप मुद्दे में बेरोजगारी (62%), महंगाई (28%), अपराध (22%), बाढ़-प्रवासन (18%) को जनसमर्थन मिल रहा है। इस प्रकार से पोल ऑफ द पोल्स स्पष्ट संकेत दे रहा है कि बिहार में कोई भी स्पष्ट लहर नहीं है। बावजूद इसके एनडीए को अनुभव और मोदी-नीतीश की जोड़ी का भरपूर फायदा मिलने का अनुमान लगाया गया है, जबकि इंडी गठबंधन को तेजस्वी की युवा अपील और महागठबंधन का सामाजिक आधार मजबूत चुनावी प्रतिस्पर्धा में बनाये हुए है।
हालांकि, यह भी कड़वा सच है कि यदि जन सुराज पार्टी और अन्य दल मिलकर 10 प्रतिशत वोट काट लें, तो कहीं एनडीए और कहीं इंडी गठबंधन का खेल बिगड़ सकता है। लेकिन किसका ज्यादा बिगड़ेगा, यह अंतिम फैसला 6 और 11 नवम्बर को वोट डालने वाले मतदाता का होगा, जो यह साफ करेगा कि क्या बिहार परिवर्तन चाहता है या स्थिरता?
इसलिए वोट डालिए और लोकतंत्र मजबूत कीजिए! पोल ऑफ द पोल्स की पूरी तस्वीर का सार सत्य यही है, ध्यान में रखिए।
– कमलेश पांडे
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक