अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक टीवी साक्षात्कार में यह दावा किया है कि पाकिस्तान और चीन गुप्त रूप से परमाणु परीक्षण कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि रूस और उत्तर कोरिया भी इसी प्रकार के परीक्षण कर रहे हैं। साथ ही ट्रम्प ने अपने शासनकाल में अमेरिकी परमाणु परीक्षण को दोबारा शुरू करने के निर्णय को उचित ठहराते हुए कहा कि जब अन्य देश अपने परमाणु हथियारों का परीक्षण कर रहे हैं, तो अमेरिका को भी ऐसा करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि “रूस और चीन परीक्षण कर रहे हैं, लेकिन वह इस बारे में बात नहीं करते। हम एक खुला समाज हैं, इसलिए हम कहते हैं। उन देशों में ऐसे पत्रकार नहीं होते जो इस पर रिपोर्ट लिखें।”
ट्रम्प ने पाकिस्तान को भी इस सूची में शामिल करते हुए कहा, “निश्चित रूप से उत्तर कोरिया परीक्षण कर रहा है, पाकिस्तान भी परीक्षण कर रहा है।” उन्होंने यह भी दावा किया कि भारत और पाकिस्तान परमाणु युद्ध के कगार पर पहुँच गए थे और उन्होंने (ट्रम्प ने) हस्तक्षेप करके स्थिति को रोका था।
देखा जाये तो ट्रम्प का यह दावा भारत के लिए चिंता का विषय बन सकता है क्योंकि भारत के सामने एक ओर पाकिस्तान है और दूसरी ओर चीन, दोनों ही परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र हैं। भारत ने 1998 के पोखरण-द्वितीय परीक्षण के बाद से कोई नया परमाणु परीक्षण नहीं किया है, जबकि पाकिस्तान और चीन दोनों अपनी परमाणु क्षमता बढ़ा रहे हैं। वर्तमान अनुमान के अनुसार (2025 तक) भारत के पास लगभग 180 परमाणु वारहेड्स हैं, जबकि पाकिस्तान के पास करीब 170 और चीन के पास लगभग 600 वारहेड्स हैं, जो 2030 तक 1,000 तक पहुँचने का अनुमान है।
चीन ने 2021 में फ्रैक्शनल ऑर्बिटल बॉम्बार्डमेंट सिस्टम (FOBS) जैसी अत्याधुनिक तकनीक का परीक्षण किया था, जो पारंपरिक मिसाइल रक्षा प्रणालियों को भ्रमित कर सकती है। वहीं पाकिस्तान भी सामरिक परमाणु हथियारों पर तेजी से काम कर रहा है।
इसके अलावा, ट्रम्प के इस खुलासे ने भारत के लिए यह प्रश्न फिर खड़ा कर दिया है कि क्या अब भारत को अपने पोखरण-III परीक्षण की दिशा में बढ़ना चाहिए ताकि अपनी हाइड्रोजन बम क्षमता और अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) कार्यक्रम को और मजबूत किया जा सके।
देखा जाये तो डोनाल्ड ट्रम्प के हालिया साक्षात्कार में किया गया यह दावा कि पाकिस्तान और चीन गुप्त रूप से परमाणु परीक्षण कर रहे हैं, न केवल अंतरराष्ट्रीय रणनीतिक संतुलन को चुनौती देता है, बल्कि भारत की सुरक्षा चिंताओं को भी नए सिरे से उभारता है। यदि इन दावों में सच्चाई का अंश भी है, तो यह दक्षिण एशिया के सामरिक समीकरणों में गहरा बदलाव ला सकता है।
हम आपको याद दिला दें कि पाकिस्तान ने 1998 में भारत के पोखरण-द्वितीय परीक्षण के बाद तत्काल ‘चागई परीक्षण’ करके खुद को परमाणु शक्ति घोषित किया था। तब से अब तक पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम सुरक्षा की आड़ में भारत-विरोधी नीति का विस्तार बन गया है। उसके परमाणु शस्त्रागार का उद्देश्य केवल प्रतिरोध नहीं, बल्कि सामरिक दबाव है। इस्लामाबाद ने अपने पारंपरिक सैन्य बलों की सीमाओं को पहचानते हुए टैक्टिकल न्यूक्लियर वेपन्स (TNWs) यानी कम दूरी के परमाणु हथियारों का विकास किया है, जो सीमित युद्ध में भी इस्तेमाल किए जा सकते हैं। इस कदम ने भारत की ‘कोल्ड स्टार्ट डॉक्ट्रिन’ को चुनौती दी है और युद्ध के किसी भी सीमित संघर्ष को पूर्ण परमाणु टकराव में बदलने की आशंका बढ़ा दी है।
देखा जाये तो चीन और पाकिस्तान के बीच सैन्य-तकनीकी सहयोग कोई नया नहीं है। 1980 के दशक से चीन पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम का अप्रत्यक्ष संरक्षक रहा है। यदि आज ट्रम्प के आरोप सही हैं कि चीन और पाकिस्तान गुप्त रूप से परीक्षण कर रहे हैं, तो यह स्पष्ट संकेत है कि दोनों देश न केवल परमाणु साझेदारी को मजबूत कर रहे हैं बल्कि भारत के विरुद्ध सामरिक समन्वय को भी नए स्तर पर ले जा रहे हैं। हम आपको बता दें कि चीन की FOBS जैसी तकनीकें भारत की मौजूदा मिसाइल रक्षा प्रणाली (जैसे पृथ्वी डिफेंस व्हीकल या PDV) को अप्रभावी बना सकती हैं। ऐसे में चीन-पाकिस्तान की संयुक्त तैयारी भारत की परमाणु प्रतिरोध नीति के लिए गंभीर चुनौती है।
हम आपको बता दें कि भारत 1998 के पोखरण-द्वितीय के बाद से ‘नो-फर्स्ट-यूज़ (NFU)’ की नीति पर कायम है। यह नीति नैतिक रूप से विश्व समुदाय में भारत की जिम्मेदार छवि को सुदृढ़ करती है, परंतु सामरिक दृष्टि से इसमें कुछ कमजोरियाँ भी हैं। भारत का परमाणु परीक्षण 1998 के बाद नहीं हुआ है। बताया जाता है कि भारत के पास आज लगभग 180 वारहेड्स हैं, जिनमें से अधिकांश फिशन प्रकार के हैं। तुलना में चीन के पास लगभग 600 और पाकिस्तान के पास करीब 170 वारहेड्स हैं। रिपोर्टें हैं कि मात्र संख्या ही नहीं, तकनीकी परिपक्वता और वितरण प्रणाली में भी चीन और पाकिस्तान का संयुक्त स्तर भारत से आगे है। यह सब देखते हुए भारत के लिए भी पोखरण-III जैसे वैधानिक परीक्षण का विचार केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और सामरिक आवश्यकता बनता दिख रहा है।
इससे भारत अपनी थर्मोन्यूक्लियर क्षमता का परीक्षण कर सकेगा, Agni-VI ICBM और K-5 SLBM (Submarine-Launched Ballistic Missile) जैसी प्रणालियों को सशक्त बना सकेगा तथा अपनी प्रतिरोधक शक्ति को व्यवहारिक रूप से प्रमाणित कर पाएगा।
वैसे तो भारत की परमाणु नीति का मूल सिद्धांत ‘विश्व शांति में योगदान’ रहा है, न कि शक्ति प्रदर्शन। परंतु जब पड़ोसी राष्ट्र गुप्त रूप से परमाणु हथियारों का विस्तार कर रहे हों, तब नैतिक संयम और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन अत्यंत आवश्यक हो जाता है। भारत की वैज्ञानिक और तकनीकी क्षमता पाकिस्तान से कहीं आगे है। भारतीय मिसाइल तकनीक— अग्नि श्रृंखला, आकाश रक्षा प्रणाली, INS अरिहंत जैसी परमाणु पनडुब्बियाँ, साफ संकेत देती हैं कि भारत गुणवत्ता में श्रेष्ठ है, भले ही संख्या में कुछ कम हो। सच यह है कि भारत की परमाण शक्ति न केवल पाकिस्तान की तुलना में अधिक विश्वसनीय और सक्षम है, बल्कि वह एक जिम्मेदार लोकतांत्रिक नियंत्रण प्रणाली के अंतर्गत संचालित होती है। कुल मिलाकर देखें तो इन तमाम परिस्थितियों के बीच सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि क्या भारत को अब तीसरा परमाणु परीक्षण, यानी ‘पोखरण–III’ जल्द से जल्द करना चाहिए?