एक बात साफ हो जानी चाहिए कि तकनीक मात्र उपकरण बनें तो यह मानवता के हित में नहीं हो सकती। ऐसे में तकनीक को जनकल्याण का माध्यम बनाना होगा। डिजिटल युग में बहुत कुछ बदला है। हमारे सोच का तरीका बदला है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के युग में आज सामान्य मानव मन से भी अधिक तेजी से तकनीक काम करने लगी है। तकनीक ने इतना विकास कर लिया है कि अब मशीनें सोचने लगी है। हमारे चिंतन और मनन को प्रभावित करने लगी है। इसमें कोई दो राय नहीं कि तकनीक ने जीवन के सभी क्षेत्रों में प्रवेश करने के साथ सहज बनाया है। समय तो यहां तक बदल गया है कि अब पढ़ना-लिखना ही नहीं तकनीक ने सोचना और निकश तक पहुंचना आरंभ कर दिया है। यह विकास का उजला पक्ष होने के साथ ही इसके पीछे छुपा काला पक्ष भी गंभीर है। हांलाकि प्रकृति अपना काम कर रही है और वह लगातार हमें चेतावनी देती जा रही है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) हमारे जीवन का हिस्सा बन चुकी है। वह हमारे निर्णयों को प्रभावित कर रही है, हमारी प्राथमिकताएं तय कर रही है, और हमारी सोच को प्रभावित कर रही है। इस दौर में हमें ऐसे नेतृत्व की जरूरत है जो तकनीक के चमत्कारों को संवेदनशीलता और दूरदृष्टि के साथ दिशा दे।
एआई एक्शन समिट में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सटीक और सामयिक टिप्पणी की है। दरअसल “टेक्नोलॉजी का लोकतंत्रीकरण होना चाहिए। हमें जन-केंद्रित एप्लिकेशन बनाने चाहिए। साथ ही हमें साइबर सुरक्षा, दुष्प्रचार और डीपफेक जैसी चुनौतियों का समाधान भी करना होगा।” डिजिटल नवाचार का उपयोग अब पारदर्शिता, सहभागिता और संवेदनशील सेवा-प्रणाली के रूप में सामने आ रहा है। हमारा देश आज एआई और सेमीकंडक्टर क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की मजबूत नींव रख रहा है। 2024 में केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदित इण्डिया एआई मिशन इसका जीता जागता उदाहरण है। इस मिशन के तहत 10,300 करोड़ रु. के निवेश से देश में एक विश्वस्तरीय एआई कंप्यूटिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित किया जा रहा है। इसका उद्देश्य है 18,693 जीपीयू से लैस साझा कंप्यूटिंग क्षमता विकसित कर भारत को वैश्विक एआई शक्तियों की अग्रिम पंक्ति में खड़ा करना है। विशेषज्ञों को मानना है कि यह सिस्टम ओपन-सोर्स एआई मॉडल डीपसीक से 9 गुना अधिक सक्षम होगा और चैटजीपीटी जैसी प्रणालियों की दो-तिहाई शक्ति तक पहुंचेगा। यानी यह केवल तकनीकी उपलब्धि नहीं होगी अपितु डिजिटल क्षेत्र में भारत को आत्मसम्मान व दुनिया के देशों की अग्रणी पंक्ति में खड़ा करने की घोषणा है।
दरअसल तकनीक का उपयोग मानव कल्याण के उद्देश्य से होना चाहिए। सरकारें इस बात को समझती है और यही कारण है कि ई-गवर्नेंस से लेकर डिजिटल शिक्षा, एआई आधारित स्वास्थ्य सेवाओं और नागरिक सुविधा केंद्रों तक हर नीति के केंद्र में आम आदमी है, सिस्टम नहीं। राज्यों में तकनीक को ‘डिजिटल एक्सेस’ के बजाय ‘डिजिटल एम्पावरमेंट’ के रूप में उपयोग किया जाने लगा है। और यही बदलाव राज्यों को एक सॉफ्ट-टेक्नोलॉजिकल स्टेट बना रहा है। राज्यों में चल रहे हरित अभियान, जल संरक्षण योजनाएं, सौर ऊर्जा प्रोत्साहन और ईको-टूरिज्म और इसी तरह की अन्य पहल इस सोच के साथ धरातल पर उतर रही हैं। यहां तक कि मानसिक स्वास्थ्य अभियान, डिजिटल डिटॉक्स क्लासेस और संस्कार संवाद जैसे कार्यक्रम शुरू किए गए हैं। ताकि युवा स्मार्टफोन के स्क्रीन से आगे सोच सकें और अपनी जड़ों से जुड़े रहें।
आज सवाल यह नहीं कि हमें तकनीक से डरना चाहिए या नहीं, बल्कि यह है कि हम तकनीक को किस नैतिक दायरे में संचालित कर सकते हैं। केन्द्र के साथ ही राज्यों की सरकारें इसे समझने लगी है और यह कारण है कि राज्यों द्वारा तकनीक का उपयोग भविष्य की संभावनाओं और जनकल्याण नीतियों के रुप में सामने आ रहा है।
डॉ. सुबोध अग्रवाल,(आईएएस)
अतिरिक्त मुख्य सचिव, राजस्थान सरकार
लेखक परिचयः-
डॉ. सुबोध अग्रवाल अतिरिक्त मुख्य सचिव, भारतीय प्रशासनिक सेवा के राजस्थान के वरिष्ठतम अधिकारी होने के साथ ही राज्य सरकार के विभिन्न विभागों, सार्वजनिक उपक्रमों और संस्थानों को प्रबंधकीय दक्षता से संचालन का दीर्घकालीन अनुभव है। डॉ. सुबोध अग्रवाल को पब्लिक पालिसी, एडमिनिस्ट्रेशन और क्राइसिस मैनेजमेंट का 36 साल का दीर्घ अनुभव है।