देश में बढ़ती महत्वकांक्षा और लालची प्रवृत्ति ने पर्यावरण के साथी और हिन्दुओं की पूजा के प्रतीक हाथियों को भी नहीं बख्शा है। अन्य वन्यजीवों और वनस्पतियों के तरह अब हाथियों पर भी संकट के बादल मंडराने लगे है। हाथी मेरे साथी के बजाए अब दुश्मन बनता जा रहा है। वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (डब्ल्यूआईआई) की नई जनगणना के मुताबिक पिछले 8 साल के भीतर देश में हाथियों की संख्या करीब 25% तक घट गई है। देश में पहली बार डीएनए के आधार पर हाथियों की गणना में यह खुलासा हुआ है। इस रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे तो हुए ही हैं, साथ ही जनगणना डराने वाली भी है। यह रिपोर्ट बताती है कि शिकार की वजह से नहीं बल्कि जंगलों के कम होने और इंसानों के साथ संघर्ष के चलते हाथियों की संख्या में कमी आ रही है।
रिपोर्ट के मुताबिक देश में करीब 22,446 हाथी हैं। जबकि 2017 में देश में हाथियों की संख्या 29,964 के करीब थी।हाथियों की गणना करने के लिए पहली बार डीएनए आधारित प्रणाली को अपनाया है, जबकि 1992 में प्रोजेक्ट टाइगर के लॉन्च होने के बाद से ही तस्वीरों और हाथियों की लीद के आधार पर ही इनकी गिनती होती थी। डब्ल्यू आई आई के वैज्ञानिक और रिपोर्ट के मुख्य लेखक कमर कुरैशी के मुताबिक जंगल कट रहे हैं, हाथियों के आवास सिकुड़ रहे हैं और कॉरिडोर का कनेक्शन खत्म हो रहा है। इस वजह से इंसानों और हाथियों के बीच संघर्ष बढ़ रहा है। खासतौर से मध्य भारत और असम में।
इस रिपोर्ट में एक अच्छी बात यह सामने आई कि शिकार के लिए हाथियों को नहीं मारा जा रहा है। लेकिन घर आवासों का सिकुड़ना बड़ी चिंता की बात है। भारत में वेस्टर्न घाट में सबसे ज्यादा हाथी हैं। यहां 11,934 हाथी हैं, जबकि 2017 में 14,587 हाथी हुआ करते थे। पूर्वोत्तर की पहाड़ियों और ब्रह्मपुत्र नदी के तटीय इलाकों में हाथियों की संख्या 10,139 से घटकर 6559 हो गई है। मध्य भारत और ईस्टर्न घाट में 3128 से घटकर 1891 हाथी ही रह गए हैं। हाथियों की मौजूदा सर्वाधिक संख्या कर्नाटक में 6013, असम 4159, तमिलनाडु 3136, केरल 2785, उत्तराखंड 1792 ओर ओडिशा में 912 हाथी मौजूद हैं। झारखंड में जंगली हाथियों की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई है और यह मात्र 217 रह गई है, जोकि 2017 के 678 के आंकड़े से काफी कम है।
देश में हाथियों पर चौतरफा संकट मंडरा रहा है। प्राकृतिक आवास सिकुड़ने से गजराज रौद्र रूप इंसानों से संघर्ष के रूप में सामने आ चुका है। देश में वर्ष 2019-20 से 2023-24 के बीच कुल 2,869 लोगों की मौत हाथियों के हमलों में हुई। सरकारी आंकड़ों के अनुसार ओडिशा में सबसे अधिक 624, झारखंड में 474, पश्चिम बंगाल में 436, असम में 383 और छत्तीसगढ़ में 303 लोगों की मौत हाथियों के हमलों में हुई। तमिलनाडु और कर्नाटक में क्रमशः 256 और 160 लोगों की मौत हुई। इसके विपरीत, बाघों के हमलों में 2020 से 2024 के बीच कुल 378 लोगों की मौत हुई। इनमें महाराष्ट्र में सबसे अधिक 218 मौतें, उत्तर प्रदेश में 61 और मध्य प्रदेश में 32 मौतें दर्ज की गईं। हर साल करीब 60 हाथियों की भी मौत प्रतिशोध में हो जाती है।
देश की रेल परिवहन व्यवस्था हाथियों के लिए खतरनाक बनी हुई है। पिछले पांच वर्षों में देश भर में रेलगाड़ियों की चपेट में आने से कम से कम 79 हाथियों की जान चली गई। पश्चिम बंगाल के पश्चिम मेदिनीपुर जिले में खड़गपुर-टाटानगर रेलखंड पर तेज रफ्तार एक्सप्रेस ट्रेन की चपेट में आने से एक हथिनी और उसके बच्चे समेत तीन हाथियों की जान चली गई। 7 हाथियों का एक झुंड रेलवे लाइन पार कर रहा था। इसी दौरान एक ट्रेन आ गई जिससे यह बड़ा हादसा हो गया था। खड़गपुर रेल मंडल में आने वाला यह रूट जंगलों से घिरा है। यहां हाथियों के साथ-साथ अन्य जंगली जानवर भी है। हाथियों सहित अन्य जंगली जानवरों की ट्रेन से कटने की ज्यादातर घटनाएं पहाड़ी और जंगली इलाकों में ही होती है।
अवैध शिकार के मामलों में कमी आई है, किन्तु यह अभी भी एक खतरा बना हुआ है। हाथियों की मौत के कुछ मामलों में जहर एक कारण हो सकता है। बिजली के तारों की चपेट में आने से भी हाथियों की मृत्यु होती है। हाथी का महत्व सांस्कृतिक, धार्मिक और पारिस्थितिक दृष्टिकोण से है। यह महत्वपूर्ण प्रजातियों में से एक है जो कई अन्य प्रजातियों को सहारा देती है। हाथी अपनी सूंड से पानी की खुदाई करते हैं, जो अन्य जानवरों को भी पानी उपलब्ध कराता है। आर्थिक रूप से, हाथी पर्यटन को बढ़ावा देते हैं और वास्तु में समृद्धि और सौभाग्य लाते हैं। हाथियों के मल से विभिन्न प्रकार के पौधों के बीज फैलते हैं, जो सवाना जैसे पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य को बेहतर बनाते हैं। वे घने जंगलों में रास्ते भी बनाते हैं जो अन्य जानवरों को आने-जाने में मदद करते हैं।
विश्व हाथी दिवस पर वाइल्डलाइफ एसओएस ने भारत में सड़कों पर भीख मांगते हाथियों की दुखद स्थिति को उजागर किया। इन विशालकाय प्राणियों को क्रूरता से सड़कों पर घसीटा जाता है। वाइल्डलाइफ एसओएस का बेगिंग एलीफेंट अभियान इन हाथियों को बचाने और इस प्रथा को 2030 तक खत्म करने की दिशा में काम कर रहा है। दुनिया भर में हर साल 16 अप्रैल को हाथी बचाओ दिवस मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य हाथियों के सामने आने वाली समस्याओं के बारे में जागरूकता बढ़ाना और इन शानदार जानवरों की रक्षा के प्रयासों को आगे बढ़ाना है। भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया प्रोजेक्ट एलीफेंट एक प्रमुख पहल है जिसका उद्देश्य हाथियों के प्राकृतिक आवासों में उनके लंबे समय तक अस्तित्व को सुनिश्चित करना है। इसके बावजूद जंगलों के कटने और हाथियों के प्राकृतिक आवासों पर अतिक्रमण की रोकथाम के बगैर यह विशाल और महत्वपूर्ण जानवर अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष करता रहेगा।
– योगेन्द्र योगी